पृष्ठम्:रुद्राष्टाध्यायी (IA in.ernet.dli.2015.345690).pdf/७१

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रुद्राष्टाध्यायी- [ पञ्चमो- ॐ नम इत्यस्य कुत्स ऋषिः । विराडतिधृतिझ्छन्दः । रुद्रो दवेता | जपे विनियोगः ॥ १९ ॥ भाष्यम् - (रोहिताय ) होहितवर्णाय ( स्थपत्तये ) स्थपतिगृहादिकर्ता विश्वकर्म- रूपेण तस्मै ( नमः ) नतिरस्तु ( वृक्षाणाम् ) तरूणाम् ( पतये ) पालकाय ( नमः ) नमः ( भुवन्तये) भूमण्डलविस्तारकारिणे ( वारिवस्कृताय ) स्थानभोग्यकराय (नमः) नमोस्तु (श्रोषधीनाम् ) ग्राम्यारण्यानामोषधीनाम् (पतये ) पालकाय ( नमः ) नमोऽस्तु ( मंत्रिणे ) सचिवरूपिणे ( वाणिजाय ) व्यापारको रुद्राय ( नमः ) नमोऽस्तु ( कक्षाणाम् ) बनोत्पन्ना गुल्मवीरुधाइयः कक्षानेपाम (पतये ) पालकाय ( नमः ) नमोऽस्तु (उचैः घोपाय ) युद्धे महाशब्दाय ( आनन्दयते) रिपुगेकाय ( नमः ) नमोऽस्तु ( पत्तीनाम् ) पदातीनाम् ( पनये ) पालकाय ( नमः ). नमोऽस्तु ॥ १९ ॥ भाषार्थ- कोहितवर्ण गृहादिकर्ता विश्वकर्मरूप निमित्त नमस्कार है, वृक्षोंके पाठकक निमित्त नमस्कार है, भूमडलके विस्तार करनेवाले स्थान भोग्य करनेवालेके निमित्त नम- स्कार है, ग्राम्य और व्यारण्य सौषधियोंके पाळकके निमित्त नमस्कार है, आलोचनमें श व्यापारकर्ताओं के रूप में स्थितके निमित्त नमस्कार है, बनके गुल्मवीरुधादिके पालक के निमित्त नमस्कार है, शत्रुओंको रुलानेवाले, युद्धमें दडा एम्र शब्द करनेशले रुद्रके निमित्त नमस्कार है, एक रथ, एक हाथ, तीन घोडे, पांच पैदलका नाम पत्ति है। इस प्रकार सेना- विशेषके पालक रुद्रके निमित्त नमस्कार है ॥ १९ ॥ विशेष-स्यपति-शब्दसे गृहआदि निर्माण करनेवाले इनके मनमें सदा ही इटकाको चिन्ता खगी रहती है, इस कारण इनका अन्तरदेशता लोहितवर्ण कहा, कारण कि इटका काळ होती हैं ॥ १९ ॥ नमः॑ कृत्स्नायुतयाघाव॑ते॒ सत्त्वा॑नाम्पत॑ये॒ मत्सह॑मानायनाचिन॑ऽआध्याधिनों- नाम्पत॑ये॒नमोनमो॑निषुङ्गिणैककुभाय॑स्ते॒- माणाम्पत॑ये॒नमोनमोनिचरेवेंपरिचराया- र॑ण्याना॒ाम्पत॑ये॒नमोनमोवञ्च॑ते ।। २० ।। ॐ नम इत्यस्य कुत्स ऋषिः अतिवृतिश्छन्दः | रुद्रो देवता । वि० पू० ॥ २० ॥