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भाष्यसहिता | सूतायाह॑न्त्यै॒न्वना॑नाम्पत॑ये॒नमोनोरेहि- ताघ ॥ १८ ॥ ॐ नम इत्यस्य कुत्स ऋषिः । नियृष्टिछन्दः । रुद्रो देवता । वि० पू० ॥ १८ ॥ डत्याय: ५० ] -- भाष्यम् - ( बम्लुशाय ) कपिलवर्णाय यद्वा विभात रुद्रमिति बलवृषभस्तस्मिन् शेते स वभ्लशस्तस्मै रुद्राय ( नमः ) नमः ( व्याधिने ) विध्यति शत्रूनिति व्याधी तस्मै रुद्राय नमः ( मन्नानाम् ) धान्यानाम् (पतये ) पालकाय (नमः ) नमः ( भव- स्प ) संसारस्य ( हेत्यै ) आयुधाय संसारनिवर्तकाय रुद्राय ( नमः ) नतिरस्तु ( भगतां पतये ) पालकाय रुद्राय ( नमः ) नमः (व्याततायिने ) जाततेन विस्कृतेन धनुषा सह एति गच्छीति आततायी टधतायुधस्तस्मै रुद्राय ( नमः ) नमः (क्षेत्रा- णाम) देशनाम् (पतये ) रक्षकाय पालकाय ( नमः ) नमः ( बहन्त्रे) न इन्तीति व्यन्ति - तस्मै ( सवाय ) सारथये तद्रूपाय ( नमः ) नमः ( बनानाम् ) व्यरण्यानाम् (पतये ) पालकाप ( नमः ) नमोऽस्तु ॥ १८ ॥ भाषार्थं-कपिकवण वा वृषमपर स्थित होनेवाएँ शत्रुओंको बेधनेवाले व्याधिरूप रुद्रको नमस्कार है। अनेक पालक रुद्रके निमित्त नमस्कार है, सखारके आयुष अर्थात संसाराने. वर्तक रुद्रके निमित्त नमस्कार है, संसारके पालक रुद्रके निमित्त नमस्कार है उथत आयु- थवाल रुद्रके निमित्त नमस्कार है, देहोंके पालन करनेवाले रुद्रके निमित्त नमस्कार है, नही भारनेवाले, पापसे रक्षक प्रधान सारविरूपके निमित्त नमस्कार है, पनोंके पाठकके निमित्त नमस्कार है ॥ १८ ॥ विवरण- रोगियोंका रक्तहास होनेपर जो वर्ण होता है उसको भ्श कहते हैं ॥ १८ ॥ नमोरोहितायस्त्युपत॑येवृक्षाणांपत॑ये॒नमोन- मौभुवन्तये॑तारिवस्कृता घोषना॒ाम्पत॑ये॒न- मोनम मुन्त्रिणेद्याणि॒िणायकक्षणाम्पत नमोनमंऽशधापायाचन्दयते सुना म्पतये नमोसं+कृत्स्नाय ।। १९ ॥ 3 pa