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(६०) रुद्राष्टाध्यायी - नाम्पत॑ये॒नमोनमोहरि॑केशायोपवीतिने॑षु- टाना॒म्पत॑ये॒नमु॒ोनमो॑त्र ब्फ्लुशा ॥ १७ ॥ ॐ नम इत्यस्य कुत्स ऋषिः । नियतिधृतिश्छन्दः । रुद्रो देवता । जपे विनियोगः ॥ १७ ॥ भाष्यम् - (हिरण्यवाहवे) हिरण्यमाभरणरूपं वाहोर्यस्य स हिरण्यवाहुः तस्मै ( सेनान्ये ) सेनां नयतीति सेनानीः तस्मै ( नमः ) रुद्राय नमः ( च ) ( विशांपतये ) पालकाय रुद्राय ( नमः ) नमः ( हरिकेशभ्यः ) हरितवर्णा: केशा : पर्णरूपाः येषां ते हरिकेशास्तेभ्यः (वृक्षेभ्यः ) वृक्षरूपरुद्रेभ्यः (नमः ) नमः ( पशूनाम् ) जीवानाम् ( पतये ) पालकाय रुद्राय ( नमः ) नमः ( खिषीमते) विदितिरस्यास्ति तस्मै ( शपिञ्जराय ) शष्पं बालतृणं तद्वस्पिञ्जराय पीतरक्तवर्णीय रुद्राय ( नमः ) नमोऽस्तु ( पथोनाम् ) मार्गाणां पालकाय रुद्राय ( नमः ) नमः ( हरिकेशाय ) नीलवर्णकेशाय जरारहिताय (उपवीतिने ) मंगलार्थयज्ञोपवीतधारिणे रुद्राय ( नम:) नतिरस्तु (पुष्टानाम्) गुणपूर्णानां नराणाम् (पतये ) पालकाय स्वामिने (नमः ) नमोऽस्तु ॥ १७ ॥ भाषार्थ-भुजाओं में सुवर्ण धारण करनेवाले महायाहु बेनापालक रुद्र के निमित्त नमस्कार है? दिशाओंके अधिपति अर्थात् समस्त जगत्को अपनी भुजाओं के नीचे रक्षा करनेवाले सेनापति के निमित्त भी नमस्कार है, पर्णरूप हरे वालोंवाले वृक्षरूप रुद्रोंके निमिस नारवार नमस्कार है, जावोंके पालन करनेवाले रुद्रके निमित्त नमस्कार है, कान्तिमान मालतृणवत् पतिवर्णवा रुद्रके निमित्त नमस्कार है, मार्गों के पालन करनेवाले रुद्रके निमित्त नमस्कार है, मगलके निमित्त उपवीत धारण करनेवाके नीलवर्णकेश वा जरारहित रुद्रके निमित्त नमस्कार है, गुण- पूर्ण मनुष्यके स्वामी रुद्रके निमित्त नमस्कार है ॥ १७ ॥ तास्पर्थं - तारपर्यं यह सब मागम शान्तरूप रुद्र हैं, अश्वत्यादि वृक्षोंपर जैसे आकाश बेल आदि निर्मूल लता होती हैं तहत् यज्ञोपवीत घारे हैं बिना रुद्रके किसी की स्थिति नहीं ही इससे रुद्र सबके स्वामी पालक कहते हैं ॥ १७ ॥ मन्त्रः । नमबन्फ्लुशायध्याघिनेत्रानाम्पत॑ये॒नो नमो॑म॒वस्य॑ह॒त्यै जग॑ताम्पतये नमोनम रु॒द्राया॑तत्ता॒यिने॒क्षेत्रा॑णा॒ाम्पत॑ये॒नम॒नम॑ [ पचमो- ।