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ऽध्यायः ५. ] भाष्यसहिता । भाषार्थ-है रुद्र ! हमारे वृद्ध गुरु पितृव्य आदिको कर्मानुसार मत मारो | और हमारे बालकको मत मारो, हमारे तरुणको मत मारो और हमारे गर्भस्थ बालकको मत मारो, हमारे पिताको मत मारो, और हमारी माताको मत मारो, हमारे प्यारे शरीर पुत्र पौत्र आदिको मत मारो | आशय यह कि, यदि कर्मानुसार उनकी आयु पूरी हो गई हो तो भी आपकी कृपा होनी चाहिये ॥ १५ मन्त्रः । मान॑स्तो॒केतन॑ये॒मनु॒ऽआयु॑षि॒मानोगोषु मानोऽअश्वे॑षु॒रीरिष ॥ मानवी॒रान्द्र- मिनो॑वधीह॒विष्म॑न्त॒त्सद॒मित्त्वा॑हवा- महे ।। १६ ।। ॐ मानस्तोक इत्यस्य कुत्स ऋषिः । निच्यृदार्षी जगती छन्दः । रुद्रो दे० | वि० पू० ॥ १६ ॥ भाष्यम् - हे रुद्र ( नः ) अस्माकम् ( तोके ) पुत्रे (तनये ) पौधे ( मा रीरिषः ) मा हिंसी: ( नः आयुषि ) जीवने ( मा ) मा हिंसी: ( नः ) ( गोषु ) धेनुषु ( मा ) मा हिंसीः (नः ) ( अश्वेषु ) तुरगेषु ( मा ) मा हिंसी: (नः मामिनः) कोयुतान्, ( वीरान ) भृत्यान् ( मा वधी: ) मा हिंसी: (हविष्मन्तः ) इवियुक्ताः (सदमित्) सदैव ( त्वा ) ( हवामहे ) वयं यागायायामः । त्वदेकशरणा वयमित्यर्थः ॥ १६ ॥ • भाषार्थ-हे रुद्र ! हमारे पौत्र पुत्रको मत मारो, हमारी आयुको मत नष्ट करो, हमारी गौ- ऑमें महार मत करो, हमारे घोडों में प्रहार मत करो, हमारे कोयुक्त वीर पुरुषोंको मत मारो । इवियुक्त निरन्तर आपको हम यज्ञके निमित्त आह्वान करते हैं । अर्थात् आपकी हो शरण हैं | तारपर्य यह है कि ईश्वर रुद्र किसी को नहीं मारते पर कर्मानुसार रोगादिमें अपनी शक्तिको प्रेरणा करते हैं उन पापोंसे अनिष्ट न होनेकी प्रार्थना है ॥ १६ ॥ d नमोहिर॑ण्यबाहवे सेना त्र्येदिशा पतंग- मोनमवृक्षेपोहरिकेशरपशुनाम्पत- ये॒नमोनम॑+शुष्टिपञ्जरायु त्विषमतेपथु -