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॥ मालविकाग्निमित्रम् ॥
- विदूषक:| १भो विस्सध्धो भविअ इमं जोव्वणवदिं पेरव्ख |
- देवी | २कं |
- विदूषक: | ३तवणीआसोअकुसुमसोहं |
- सर्वे | उपविशन्ति |
- राजा | मालविका विलोक्यात्मगतम् | कष्टं खलु संनिधिवियोगो म- 5
- माद्य |
- अहं रथाङ्गंनामेव प्रिया सहचरीव मे |
- अननुज्ञातसंपर्का धारिणी रजनीव नौ ||९||
। तत: प्रविशति कञ्चुकी ।
- कञ्चुकी | जयतु जयतु देव: | अमात्यो विज्ञापयति | तस्मिन्विदर्भविषयोपायने द्वे शिल्पिदारिके मार्गरपरिश्रमादलसशरीरे इति कृत्वा न प्रवेशिते | संप्रति देवोपस्थानयोग्येतदाज्ञां देवो दातुमर्हतीति|
- राजा | प्रवेशय ते |
- कञ्जुकी | यदाज्ञापयति देव: | इति निष्कभ्य ताभ्याम् सह पुन: प्रविश्य | 15
- इत इतो भवत्यौ |
- १. भो विक्षब्धो भूत्वोमा यौवनवतो प्रेक्षस्व |
- २. काम् ।
- ३. तपनीयाशोककसमशोभाम् ।
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