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भोजप्रवन्धः

 कभी न चंदा हो सकता है इस मुखेंदु के तुल्य ।'

 पूरे चाँद में भी इस जैसे नयनों के विलास कहाँ हैं और कब होता है ऐसा वाणी विलास ! तत्पश्चात् प्रातः उठ कर और प्रातः कृत्त्य समाप्त करके सभा में पहुँच राजा विद्वद्वरों से वोला-'हे कविजन, इस समस्या की पूर्ति करो,' और पढ़ा-

 'कभी न चंदा हो सकता है इस मुखेंदु के तुल्य ।'

 फिर कहा-'यदि आप इस समस्या की पूर्ति नहीं कर सकते, तो मेरे देश में रहना उचित नहीं है ।' तब डरे हुए वे कवि अपने-अपने घर गये।

 चिरं विचारितेऽन्यर्थे कस्यापि नार्थसङ्गतिःस्फुरति । ततः सर्वैर्मिलित्वा वाणःप्रेषितः। ततः सभां प्राप्याह राजानम्-'देव, सर्वैर्विंद्वद्भिरहं प्रेषितः। अष्टवासरानवधिमभिधेहि । नवमेऽह्नि पूरयिष्यन्ति ते । न चेद्देशान्निगच्छन्ति ।' ततो राजा 'अस्तु' इत्याह । ततो बाणस्तेषां विज्ञाप्य राजसन्देशं स्वगृहमगात् । ततोऽष्टौदिवसा अतीताः । अष्टमदिनरात्रौ मिलितेषु कविषु बाणः प्राह--'अहो तारुण्यमदेन राजसंमानप्रमादेन किच्चिद्विद्यामदेन कालिदासो निःसारितोऽभवत् । समे भवन्तः सर्व एव कवयः। विषमे स्थाने तु स एक एव कविः । तं निःसार्येदानी किं नाम महत्त्वमासीत् । स्थिते तस्मिन् कथमियमवस्थास्माकं भवेत् । तन्निःसारे या या बुद्धिः कृता सा भवद्भिरेवानुभूयते ।

सामान्यविप्रविद्वेषे कुलनाशो भवेत्किल ।
उमारूपस्य विद्वेषे नाशः कविकुलस्य हि ।। १५० ॥

 बहुत समय तक अर्थ विचारते रहने पर भी किसी को भी अर्थ की संगति का स्फुरण नहीं हुआ। तब सबने मिलकर बाण को भेजा वह सभा में जाकर राजा से बोला-'महाराज, सब विद्वानों ने मुझे भेजा है । आठ दिन का अवसर दीजिए । वे नवें दिन समस्या पूर्ति कर देंगे, अन्यथा देश से निकल जायेंगे।' तब राजा ने कहा--'ठीक है।' तदनंतर बाण राजा का संदेश उन्हें बताकर अपने घर चला गया। फिर आठ दिन बीत गये । आठवें दिन की रात में उन कवियों के मिलने पर बाण ने कहा-'अरे, तरुणाई के मद अथवा राज संमान के प्रमाद अथवा कुछ विद्या के मद के कारण आपने कालिदास को निकलवा दिया। सहज स्थान में तो आप सभी कवि