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पृष्ठम्:भोजप्रबन्धः (विद्योतिनीव्याख्योपेतः).djvu/७७

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भोजप्रबन्धः

हैं, विषमस्थान में तो वही एक कवि है। उसे निकलवाकर आपने अब कौन-सी बड़ाई पा ली । उसके रहने पर हमारी यह दशा क्यों होती? उसे निकलवाने में जो-जो बुद्धि लगायी, उसका अनुभव अब आपको ही हो रहा है।

 सामान्य ब्राह्मण से विद्वेष रखने पर निश्चय ही कुलनाश होता है। उमा रूप ब्राह्मण द्वेष से कवि कुल का नाश होता है।

 ततः सर्वे गाढं कलहायन्ते स्म मयूरादयश्च । ततस्ते सर्वान्कलहान्निवाये सद्यः प्राहु:-'अद्यैवावधिः पूर्णः कालिदासमन्तरेण न कस्यचित्सामर्थ्यमस्ति समस्यापूरणे।

सङ्ग्रामे सुभटेन्द्राणां कवीनां कविमण्डले। .
दीप्तिर्वा दीप्तिहानिर्वा मुहुर्तेनैव जायते ।। १५१ ॥

 यदि रोचते ततोऽद्यैव मध्यरात्रे प्रमुदितचन्द्रमसि निगूढमेव गच्छामः सम्पत्तिसम्भारमादाय। यदि न गम्यते श्वो राजसेवका अस्मान् बलान्निःसारयन्ति । तदा देहमान्नेणवास्माभिर्गन्तव्यम् । तदद्य मध्यरात्रे गमिष्यामः।' इति सर्वे निश्चित्य गृहमागत्य बलीवदेव्यूढेषु शकटेषु सम्पदामारोप्य रात्रावेव निष्क्रान्ताः ।

 तदनंतर सब मयूर आदि कवि डटकर आपस में झगड़ने लगे। तव वे सब, झगड़ना छोड़कर तुरंत वोले-'आज ही अवधि पूर्ण हुई है. और समस्यापूर्ति की सामर्थ्य कालिदास को छोड़कर किसी में भी है नहीं।

 सुभटराजों की युद्ध में और कवियों की कवि मंडली में तेजोमयता अथवा तेजो हानि मुहूर्तभर में ही हो जाती है।

 सो यदि आप लोग ठीक समझें तो आज ही आधी रात को चंद्रमा के उदित होने पर चुपचाप संपत्ति सामग्री ले करके निकल चलें। यदि नहीं जायेंगे. तो कल राज सेवक हमें बल पूर्वक निकाल बाहर करेंगे। तब फिर हमें अपना शरीरमात्र लेकर जाना पड़ेगा। सो आज आधी रात को निकल चलेंगे।' ऐसा निश्चय कर घर पहुँच बैलगाडियों पर संपत्ति सामग्री लाद कर सव रात को ही निकल पड़े।

 ततः कालिदासस्तत्रैव रात्रौ विलासवतीसदनोद्याने वसन् पथि गच्छतां तेषां गिरं श्रुत्वा वेश्याचेटीं प्रेषितवान्–'प्रिये, पश्य क एते