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भोजप्रबन्धः


सुवर्णमणिकेयूराडम्बरैरन्यभूभृतः ।
कलयैव पदं भोज तेषामाप्नोति सारवित् ।। ११८ ।।
सुधामयानीव सुधां गलन्ति विदग्धसंयोजनमन्तरेणा:..
काव्यानि निर्व्याजमनोहराणि वाराङ्गनानामिव यौवनानि ।।११६।।
ज्ञायते जातु नामापि न राज्ञः कवितां विना ।
कवेस्तद्वयतिरेकेण न कीर्तिः स्फुरति (क्षितौ ।।११७।।

 और भी है- उपभोग करने में डरनेवाले. ( कंजूस); धन इकट्ठा करने में लगे हुए पुरुषों का धन घर में कन्यारूपी मणि के समान दूसरे के लिए ही रहता है।

 हे भोज, अन्य राजा स्वर्ण, मणि और केयूर के आडम्बरों के कारण जिस स्थान को प्राप्त करते हैं, उनके उस स्थान को तत्ववेत्ता कला के द्वारा ही प्राप्त कर लेते हैं।

 अमृत से परिपूर्ण-जैसे स्वभावतया मनोहर काव्य, मर्मज्ञ विद्वान् के संयोग के विना अपने अमृतरस को वाराङ्गणाओ के यौवन की भाँति व्यर्थ गला देते हैं।

 कविता के विना राजाओं का नाम भी नहीं जाना जाता और राजा से व्यतिरिक्त हो ( राज के अभाव में ) कवि का यश धरती पर नहीं फैलता।'

मयूरः--

'ते वन्द्यास्ते महात्मानस्तेषां लोके स्थिरं यशः।
यैर्निबद्धानि काव्यानि ये च काव्ये प्रकीर्तिताः' ।। १२१॥

मयूर-जिन्होंने काव्य-रचना की ओर जिनका काव्य में वर्णन हुआ वे वंदनीय हैं वे महात्मा हैं और उन्हीं का यश संसार में स्थिर हैं ।

वररुचिः-

‘पदव्यक्तिव्यक्तीकृत सह्रदयावन्धललिते
कवीनां मार्गेऽस्सिन्स्फुरति बुधमात्रस्य धिषणा ।
. न च क्रीडालेशव्यसनपिशुनोऽयं कुलवधू-
कटाक्षायां पन्थाः स खलु गणिकानामविषयः ॥ १२२॥