सुवर्णमणिकेयूराडम्बरैरन्यभूभृतः । |
और भी है- उपभोग करने में डरनेवाले. ( कंजूस); धन इकट्ठा करने में लगे हुए पुरुषों का धन घर में कन्यारूपी मणि के समान दूसरे के लिए ही रहता है।
हे भोज, अन्य राजा स्वर्ण, मणि और केयूर के आडम्बरों के कारण जिस स्थान को प्राप्त करते हैं, उनके उस स्थान को तत्ववेत्ता कला के द्वारा ही प्राप्त कर लेते हैं।
अमृत से परिपूर्ण-जैसे स्वभावतया मनोहर काव्य, मर्मज्ञ विद्वान् के संयोग के विना अपने अमृतरस को वाराङ्गणाओ के यौवन की भाँति व्यर्थ गला देते हैं।
कविता के विना राजाओं का नाम भी नहीं जाना जाता और राजा से व्यतिरिक्त हो ( राज के अभाव में ) कवि का यश धरती पर नहीं फैलता।'
मयूरः--
'ते वन्द्यास्ते महात्मानस्तेषां लोके स्थिरं यशः। |
मयूर-जिन्होंने काव्य-रचना की ओर जिनका काव्य में वर्णन हुआ वे वंदनीय हैं वे महात्मा हैं और उन्हीं का यश संसार में स्थिर हैं ।
वररुचिः-
‘पदव्यक्तिव्यक्तीकृत सह्रदयावन्धललिते |