एक वार भोज नगर से बाहर निकला और नये तालाव के पानी से बचपन से सिद्ध कपाल-शुद्धि आदि की क्रिया की। ताल के नीचे से एक मछली का बच्चा राजा के कपाल में घुस गया और टेढ़ी नस के निकट कृमि छोड़कर बाहर निकल गया। फिर राजा अपनी पुरी में आगया । तब से राजा के कपाल में पीडा होने लगी।
ततस्तत्रत्यभिषग्वरैः सम्यक्चिकित्सितापि न शान्ता । एवमहर्निशं. |
वह पीडा वहाँ के अच्छे चिकित्सकों के द्वारा भली भांति चिकित्सा करने पर भी दूर न हुई। इस प्रकार मनुष्यों को अज्ञात महारोग से राजा के दिन रात निरंतर अस्वस्थ रहने पर-
सुख-चैन न मिलने से राजा का शरीर अत्यंत क्षीण और मुख हेमंत ऋतु में कमल के समान अभद्र, कांतिहीन, राहु के मुख में पड़े चंद्रबिम्ब के सदृश हो गया । जैसे नपुसक स्त्रियों से विमुख रहता है, वैसे ही उसका चित्त राज- काज से विमुख रहने लगा और जैसे सूखे जंगल में आग फैल जाती है, वैसे ही रोग पूरी तरह फैल गया।
एवमतीते संवत्सरेऽपि काले न केनापि निवारितस्तद्गदः । ततः. श्रीभोजो नानाविधसमानौषधग्रसनरोगदुःखितमनाः समीपस्थं शोकसागरनिमग्नं बुद्धिसागरं कथमपि संयुताक्षरामुवाच वाचम्'बुद्धिसागर, इतः परमस्मद्विषये न कोऽपि भिषग्वरो वसतिमातनोतु । बाह्वटादिभेषजकोशान्निखिलान्स्रोतसि निरस्यागच्छ,। मम देवसमागमसमयः समागतः, इति । तच्छुत्वा सर्वेऽपि पौरजनाः कवयश्चावरोधसमाजश्व विगलदस्त्रासारनयना बभूवु।
इस प्रकार एक वर्ष का समय बीत जाने पर भी किसी से, उसका रोग दूर न हुआ । तब अनेक प्रकार की एक जैसी औषधों के सेवन और रोग से