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भोजप्रबन्धः

तो लौटकर अंगरक्षक बोला-'महाराज, मेरे पूछने पर उसने जो कहा, सो सुनिए-

गयो,  'यह मचिया पर पड़ा, बूढ़ा मेरा पति है; यह मेरा घर है, जिसमें धूनी- मात्र शेष है; यह बरसात के आने का समय है और मेरे बच्चे का कोई कुशल समाचार भी नहीं है। प्रयत्न पूर्वक संचित तेल की मटकी भी फूट गयी, तो अत्यंत व्याकुल हो गर्भ के भार से अलसाती अपनी पुत्र-वधू को देखकर (बूढ़ी ) सास बहुत देर से रो रही है ।

 तब कृपा से सागर पृथ्वीपालक ने उसके लिए लाख मुद्राएँ दीं। अन्यदा कोङ्कणदेशवासी विप्रो राजे 'स्वस्ति' इत्युक्त्वा प्राह-

शुक्तिद्वयपुटे भोज यशोऽब्धौ तव रोदसी।
मन्ये तदुद्भवं मुक्ताकलं शीतांशुमण्डलम् ॥ २५६ ॥

राजा तस्मै लक्ष ददौ।

 दूसरी वार कोंकण देश का निवासी एक ब्राह्मण 'राजा का कल्याण हो,' यह कहकर वोला- हे भोज, ये आकाश और घरती तेरे यश-सागर में पड़ी सीपी के दो पुट हैं, मैं मानता हूँ कि यह शीत किरण चंद्रमंडल उसी से उत्पन्न म मोती है। राजा ने उसे लाख मुद्राएँ दीं। अन्यदा काश्मीरदेशात्कोऽपि कौपीनावशेषो राजनिकटस्थकवीन्कन- कमाणिक्यपट्टदुकूलालङ्कृतानवलोक्य राजानं प्राह-

 नो पाणी वरकङ्कणक्वणयतो नो कर्णयोः कुण्डले
 क्षुभ्यत्क्षीरधिदुग्धमुग्धमहसी नो वाससी भूषणम् ।
 दन्तस्तम्भविकासिका न शिविका नाश्वोऽपि विश्वोन्नतो
 राजन्राजसभासुभाषितकलाकौशल्यमेवास्ति नः ।। २५७ ।।

ततस्तस्मै राजा लक्षं ददौ ।

 एक और वार काश्मीर देश से आया कोई कौपीन मात्र धारी व्यक्ति राजा के समीपवर्ती कवियों को सुवर्ण, माणिक और रेशमी वस्त्रों में सुसज्जित देखकर बोला-

६ भोज०