१४९६ ब्राह्मस्फुटसिद्धान्ते चान्द्रात् मानात्तिथि सावनतो दिनानि । सौरैन्दवाभ्यां तु विना न तत्स्यात्” इति श्रीपत्युक्तमाचार्योक्तानुरूपमेव । एकराशिं हित्वा यावता कालेन रवी राश्यन्तरं याति स सौरोमासस्तत्त्रिशद्भागः सौरं दिनं भवतीति सौरमानम् । त्रिशत्तिथिभिश्चान्द्रो मासो भवति । रविचन्द्रयोर्युतिरमावस्यान्ते भवति ततो यावता कालेन पुनस्तद्युतिर्भवति स एव चान्द्रमासः । एकस्मिन् चान्द्र मासे त्रिशत् तिथयस्तदा रविचन्द्रयोरन्तरं च चक्रांशा ३६० अतोऽनुपातेनैकस्यां तिथौ रवि चन्द्रयोरन्तरं द्वादशभागाः इति चान्द्रमानम् । सूर्योदयद्वयान्ती रबिसावनदिनं तेषां त्रिशता सावनमासो मासो भवतीति सावनमानम् । नाडीनां षष्ट्या नाक्षत्रमहोरात्र भवति । एकनक्षत्रस्योदयानन्तरं यावता कालेन तस्य पुनरुदयः स नाक्षत्राहोरात्र कालः। तेषामहोरात्राणां त्रिंशता नाक्षत्रमासो भवतीति नाक्षत्रमानम्। नाडीषष्टचा तु नाक्षत्रमहोरात्र प्रकीत्तितम् । तत्त्रिशता भवेन्मासः सावनोऽर्कोदयैस्तथा। ऐन्दवस्तिथिभिस्तद्वत् संक्रान्त्या सौर उच्यते । मसैद्वादशभिर्वर्षमिति’ एवं प्रतिपादितमस्ति । सिद्धान्त शेखरे ‘दर्शावधि मासमुशन्ति चान्द्र सौरं तथा भास्करराशिभोगम् त्रिशद्दिनं सावनसंज्ञमार्या नाक्षत्रमिन्दोर्भगणभ्रमश्च ’ शुक्लप्रतिपदा- दिदंर्शान्तश्चान्द्रो मासः। रवेः स्फुटगत्या त्रिशद्भागभोगः सौरमासः। त्रिशद्दिनं सावनमासः । चन्द्रस्य द्वादश राशिभोगो नाक्षत्रमास इति ॥।१॥ । अब मानाध्याय प्रारम्भ किया जाता है । उसमें पहले किस किस मान से कौन कौन पदार्थो ग्रहण किये जाते हैं कहते हैं । हि. भा–सौर मान से (अहर्गणानयन में सौरमान से) वर्षे ग्रहण किये जाते हैं । उन सौर वर्षों को बारह से गुणा करने के बाद जब मास जोड़ते हैं तो चान्द्रमास ग्रहण करते हैं। उसको तीस से गुणा करने के बाद तिथि जोड़ने के समय चान्द्रमान ही से तिथि ग्रहण करते हैं । पुनः साधित अहर्गण में सावन मान से दिन ग्रहण करते हैं । सावनमान ही से वर्षपति और मासपति का शन होता है। जैसे ‘अहर्गणाव कल्पगताववाप्त' मित्यादि चिशन भाष्य में लिखित श्लोक से वंर्षाधिपति न सावनमान ही से है तथा 'अहर्गणाव साग्नि ३० हतादवाप्त' मित्यादि विज्ञान भाष्य में लिखित श्लोक से मासाधिपतिज्ञान भी सावनमान ही से है । मध्यम अहसाघन सावनमान ही से होने से मध्यम ग्रह सावनमान ही से ग्रहण किये जाते हैं। वह सावनमान सौरमान और चान्द्रमान के बिना नहीं होता है । अर्थात् सौर और चन्द्र के बिना अहर्गण साधन नहीं होता है । सिद्धान्तशेखर में “वर्षाणि सौरात् प्रवदन्ति चान्द्राव” इत्यादि विज्ञानभाष्य में लिखित श्लोक से श्रीपति ने आचायक्त
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