मानाध्यायः १४९७ के अनुरूप ही कहा है । एक राशि को छोड़ कर जितने काल में रवि राश्यन्तर(दूसरी राशि) में जाते हैं वह सौर मास है, उसक। तीसवां अ श एक सौर दिन होता है, बारह सौर मासों का एक सौर वर्ष होता है, यह सौरमान है । तीस तिथि का एक चान्द्रमास होता है । रवि और चन्द्र का योग अमावस्यान्त में होता है, उसके बाद जितने काल में पुनः (फिर) उन दोनों का योग होगा वह चान्द्र मास है, एक चान्द्रमास में तीस तिथियां होती हैं तब रवि और चान्द्र का अन्तरांश चक्रांश ३६० के बराबर होता है इस से अनुपात द्वारा एक तिथि में रवि और चन्द्र का अन्तरांश वारह अ श होता है, यह चान्द्रमान है, दो सूर्योदय का अन्तरकाल एक रवि सावन दिन होता है, तीस सावन दिनों का एक सावन मास होता हैं, यह सावन मान है, साठ नाड़ी (दण्ड) का एक नाक्षत्र अहोरात्र होता है, एक नक्षत्र के उदय के बाद पुन: जितने काल में उसका उदय होता है वह नाक्षत्राहोरात्र काल है । तीस नाक्षत्राहोरात्र का एक नाक्षत्र मास होता है, यह नाक्षत्र मान है। सूर्य सिद्धा न्त में नाडीषष्टघा तु नाक्षत्रमहोरात्र प्रकीत्तितम्' इत्यादि विज्ञान भाष्य में लिखित श्लोकों से सौरादि मान वणित है । सिद्धान्तशेखर में ‘दर्शावघ मासमुशन्ति चान्द्रं सौरं तथा भास्करराशिभोगम्' इत्यादि से श्रीपति ने भी सूर्य सिद्धान्तोक्त के अनुरूप ही कहा है इति ॥१॥ इदानीं मानान्याह । मानानि सौरचान्द्राद्भुसावनानि ग्रहानयनमेभिः। मानैः पृथक् चतुर्भिः संव्यवहारोऽत्र लोकस्य ॥२॥ सु- भा–सौरं चान्द्रमाक्षी सावनमिति मानानि सन्ति । एभिर्मानैरौहानय नमेभिश्चतुभिः पृथक् पृथगत्र भुवि लोकस्य प्राणिनो व्यवहारो भवति । ‘ज्ञेयं विमिश्री तु मनुष्यमानम्न'-इत्यादि भास्करोक्तमेतदनुरूपमेव ॥२ ॥ वि. भा.-सौरं चान्द्र नाक्षत्र सावनमिति मानानि सन्ति । एभिर्मानैर्गुहा नयनं भवति, तथैभिश्चतुभिः पृथक् पृथक् अत्र पृथिव्यां लोकस्य व्यवहारो भवति । सर चान्द्रमससावनमानैः सौड़वैर्गुहगतैरवबोधः। एभिरत्र मनुजव्यवहारो दृश्यते च पृथगेव चतुभिः। उडूनि नक्षत्राणि तत्संम्बन्धीन्यौड़वानि तैः सह वत्तन्त इति सड़वानि तैरित्यर्थः । न केवलं शास्त्रव्यवहारसिद्धत्वं किन्तु लोक व्यवहारसिद्धत्व- मप्यस्त्येभिः। श्रीपत्युक्तमिदमाचार्योक्तानुरूपमेव । सिद्धान्तशिरोमणौ ‘ज्ञेयं विमिश्न तु मनुष्यमानम्’ भास्करोक्तमपीदमाचायोंक्तानरूपमेवेति ॥२॥ अब मानों को कहते हैं । हि. भा.- सौरचान्द्रनक्षत्र-सावन ये मान हैं, इन मानों से ग्रहानयन होता है,
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