पृष्ठम्:ब्राह्मस्फुटसिद्धान्तः (भागः ४).djvu/३१०

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गोलबन्धाधिकारः १४०१ होरात्रवृत्तमेव नाडीवृत्तरूपं मीनान्ताहोरात्रवृत्तम् । एषामहोरात्रवृत्तानां व्यासाः पृथक् पृथक् द्युज्या भवंति । एवमिष्टमप्यहोरात्रवृत्तगोलोपरि पृथक् निवे इयम् । सिद्धान्तशेखरे “मेषाद् वृत्तत्रितयमपमांशंभु हाणां त्रयाणां नाडीवृत्ता दिदमुदगपि व्यत्ययात् कर्कटाच्च । षण्णां चूकात् कथितमनुदक् चैवमिष्टापमांशैः स्वाहोरात्राद्वयमभिहितं मण्डलं गोलविद्भिः।'श्रीपतिः । लल्लक्ष-वृत्तत्रयमपमां शैनीवृत्ता भवत्यजादीनाम् । ब्यस्तं कर्यादीनामेवं पण् तुलादीनाम् । इष्क्रान्तेरन तद् द्यज्यामण्डलं च बध्नीयात् । मध्येऽस्य ग्रहगोला भवन्ति वृत्तैर्भगो लस्य ।’ आचार्यस्याऽऽदर्शभूताविति । भास्कराचार्योऽपि ‘ईप्सितक्रान्तितुल्येऽन्तरे सर्वतो नाड़िकाख्यादहोरात्रवृत्ताढ्यम् । तत्र बध्वा घटीनां च षष्टधाऽङ्कयेदस्य विष्कम्भखण्डं युवा मता।” एषां प्राचीनानां सदृशमेवाहोरात्रवृत्तं कथयति । केवलमयनांशलब्धिकारणात् 'विषुवत्क्रान्तिवलयोः सम्पातः क्रान्तिपातः स्यादि' ति प्रथमं कथयित्वा “प्रथ कल्प्या मेषाद्या अनुलोमं क्रान्तिपाताङ्कात् । इत्याह ।५७५८॥ अब मेषादिद्वादश वाहरानियों के अहोरात्रवृत्त को कहते हैं। हि- भा-मेषादि तीन राशि (मष-वृषमिथुन) यों के क्रान्त्यंशतुल्य अन्तर पर नाडीवृत्त से उत्तर तरफ अहोरात्र वृत्त संज्ञक तीन वृत्तों को बांधना चाहिये-अर्थान् नाडीवृत्त से उत्तर तरफ मेघान्त क्रान्त्यंशान्तर पर जो वृत्त होता है वह मेषान्ताहोरात्रवृत्त है, वृषान्त क्रान्त्यंशान्तर पर नाडीवृत्त से उत्तर जो वृत्त होता है वह वृषान्ताहोरात्रवृत्त है । एवं नाडीवृत्त से उत्तर मिथुनान्त क्रान्त्यंशान्तर पर मिथुनान्ताहोरात्र वृत होता है । यह मेष- वृत्तमिथुन के अहोरात्र वृत्त विपरीत क्रम से कक्षीदि तीन राशियों का अहोरात्रवृत्त होता है अर्थात् वृषान्ताहोरात्र वृत्त ही कर्कान्ताहोरात्र वृत्त होता है, मेषान्ताहोरात्रवृत्त ही सहान्ताहोरात्रवृत्त होता है । कन्यान्ताहोरात्रवृत्त मीनान्ताहोरात्रवृत्तरूप नार्घवृत्त ही हैं । तुलादि छः राशियों के नाडीवृत्त से दक्षिण तरफ अहोरात्रवृत्त होता है। जैसे नाडीवृत्त' से दक्षिण तुलान्त कान्यंशान्तर पर तुलान्ताहोरात्रवृत्त होता है । नाडीवृत्त से दक्षिण दृश्चि कान्त क्रान्त्यंशान्तर पर वृश्चिकान्ताहोरात्रवृत्त होता है । एवं नाडीवृत्त से दक्षिण धनुरन्त क्रान्त्यंशान्तर पर धनुरन्ताहोरात्र वृत्त होता है। ये ही विपरीत क्रम से मकरादि राशियों का अहोरात्र वृत्त होते हैं अर्थात् वृश्चिकान्ताहोरात्रवृत्त ही मकरान्ताहोरात्रवृत्त होता हैं । तुलान्ताहोरात्रवृत्त ही कुम्भान्ताहोरात्रवृत्त होता है । कन्यान्ताहोरात्रवृत्त ही नाडीवृत्तरूप मीनान्ताहोरात्रवृत्त होता है । इन अहोरात्रवृत्तों की व्यास द्युज्या होती है। एवं इष्ट अहोरा प्रवृत्त को भी पृथक् गोल के ऊपर निवेश करना चाहिये । सिद्धान्तशेखर में ‘मषाद्वृत्त त्रितयमपमांशैर्हाणां त्रयाणां’ इत्यादि विज्ञान भाष्य में लिखित श्रीपयुक्त के तथा ‘वृत्तत्र यमपमांशेनार्घवृत्ताव’ इत्यादि विज्ञान भाष्य में लिखित लन्लोक्त का आदर्शरूप आचायक्त ही है । भास्कराचार्य भी ‘ईप्सितक्रान्तितुल्येऽन्तरे सर्वतो नाडिकारव्यादहोरात्रवृत्ताढ्यम्’