ब्राह्मस्फुटसिद्दान्ते
क्षे -- -इ इ क्षे
---ज्ये + प्र.क= २ प्र.क पक्षौ २ प्र भक्तौ तदा ------------ = क । --- अत्रैवेष्टुयोजनेन
२प्र इ क्षे --- +इ
क्षे इ
+ इ = ज्ये + प्र.क + ज्ये -- प्र.क =२ ज्ये श्रतः ------- = ज्ये , एतावता s
इ २
चार्योक्तमुपपन्नम् ॥ बीजगरिगते 'इष्ट्भक्थो द्विघाक्षेप' इत्यादि भास्करोक्तमेतदनुरूपमेवेति ॥ ६९ ॥
भव वर्गात्मक प्रक्रुति में कनिष्ट श्रोर ज्येष्ठ का श्रानयन करते है । हि.मा. - वर्गात्मक प्रक्रुति में क्षेप को किसी इष्ट से भाग देकर जो फल हो उसमें उसी इष्ट को युत श्रौर हीन कर श्राघा करना चाहिये इस तरह दो राशीयों का मान होता है , उनमें प्रथम राशि ज्येष्ठ होता है , द्वितीय राशि को प्रक्रुति के मूल से भाग देने से कनिष्ठ होता है इति ।
उपपत्ति । २ २ २ २ २ २
वर्गं प्रक्रुति से प्र .क + क्षे = ज्ये समशोधन से क्षे = ज्ये --प्र. क वर्गान्तर योगान्त्रर घात के बराबर होता है इसलिये क्षे =(ज्ये+प्र.क) (ज्ये--प्र.क) यहां यदि ज्ये -- प्र.क = इष्ट माना जाय तव क्षे = (ज्ये + प्र.क) इ। क्षे = प्रथमराशि = ज्ये । क्षे ___ इ = द्वितीयराशि =
----+इ ----- इ इ ------------ ---------------- २ २
द्वितीयराशि = प्र.क क्षे __ इ क इससे श्राचार्योक्त उपपन्न हुश्रा ।
----- = इ
बीज गरिग्रत में ' इष्ट भक्तौद्विधाक्षेपः ' इत्यादि भास्करोक्त इसके घनरूप ही
है इति ॥ ६६ ॥
श्रतोSग्रै चैकाSर्यां नष्टा सा कोलब्रू कानुवादानुसारेण ।
वर्गच्चिन्मै गुखके प्रथमं तम्मूल भाजितं भवति । वर्गच्चिन्ने क्षेपे तत्पदगु रिपते तदा भूमै ॥ ७० ॥
एवं भवितुमर्हति ।