पृष्ठम्:ब्राह्मस्फुटसिद्धान्तः (भागः ४).djvu/११३

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अ+१/ न =व + 'w/म यह एक समीकरण है जिस में प्र, ब ये दोनों संख्याए संभव हैं, न, म, ये दोनों संख्याएँ प्रवर्गाङ्क रूप हैं तब अ=व, न=म होगा । यदि ऐसा नहीं होगा तो कल्पना करते हैं अ=व+इ अतः व+इ+ १vन = व + '/म समशो धन से इ.+ ५/न = + ५/म वर्ग करने से इ+२ इ५/न+न=म समशोधनादि से = */न इससे सिद्ध होता है कि न का मूल भिन्न हो कर अभिन्न संभव संख्या २ इ के बराबर हुआ, लेकिन क का मान पहले अवर्गाङ्क रूप प्रकल्पित है, अवर्गाङ्क का मूल भिन्न वर्ग में भिन्नत्व के कारण और निरवयवाङ्क के वर्ग में वर्गाङ्कत्व के कारण नसावयव होता है, न निरयव, इसलिये पूर्व कल्पना समीचीन नहीं हैं । अतः अ=व, न=म सिद्ध होता है। कल्पना करते हैं अ+ Vन इसका मूल= */य-+ */र वर्ग करने से य-+-र+१/४ य. र=अ + ५/ न पूर्व समीकरणयुक्ति से य+ र= अ । ४ य. र=न वर्ग करने से य'+२ य. र+-र=अ' । ४ य. र=न समशोधन से य'-२य. र-+-र=अ'—न मूल लेने से य-र= १/ अ-न, अन्तर ज्ञान से संक्रमण गणित से य र इन दोनों का मान विदित हो जायगा । इस से प्राचार्योक्त उपपन्न हुआ । सिद्धान्त शेखर में ‘रूपकृतेः करणी रहिता वा' इत्यादि संस्कृतोपपत्ति में लिखित श्लोक से श्रीपति ने आचा यक्त के अनुरूप ही कहा है, भास्कराचार्य ने बीज गणित में ‘वर्गे करण्या यदि वा करण्योः इत्यादि संस्कृतोपपत्ति में लिखित पद्यों से श्रीपत्युक्त करणीमूलानयन को स्पष्टी करण पूर्वक कहा है । ४० ।।

    इदानीमव्यक्तसङ्कलितव्यवकलितयोः करणसूत्रमाह ।
    अव्यक्त वर्गघनवगवर्गपञ्चगत षड्गतादीनाम् ।
    तुल्यानां संकलितव्यवकलिते पृथगतुल्यानाम् ।। ४१ ।।
    सु. भा-अव्यक्तानां तद्वर्गाणां चनानां वर्गवर्गाणां पञ्चगतानां पञ्च

घातानां षड्गतादीनां षड्घातादीनां तुल्यानां समानजातीनां सङ्कलितव्यवकलिते भवतोऽतुल्यानां भिन्नजातीनां च पृथक् स्थापनमेव तेषां सङ्कलितव्यवकलिते भवत इति । ‘योगोऽन्तरं तेषु समानजात्योविभिन्नजात्योश्च पृथक् स्थितिश्ध ' इति भास्करोक्तमेतदनुरूपमेवातो ऽस्योपपत्तिश्च तद्वत् ॥ ४१ ।।

वि. भा-अव्यक्तानां वर्गाणां घनानां वर्गवर्गाणां पञ्चघातानां षड् घातादीनां तुल्यानां (समानजातीनां) योगोऽन्तरं भवति, अतुल्यानां (भिन्नजा तीनां) पृथक् स्थितिरेव “तद्योगोऽन्तरं भवतीति । नारायणीये बीजगणितावतंसे ‘वणषु च समजात्योर्योगः कार्यस्तथा वियोगश्च । असदृशजात्योर्योगे पृथक् स्थितिः