५१ ब्राह्मस्फुटसिद्धान्ते उन्नतांशाश्च शङ्क्वनुपातेन मध्यच्छाया त्रिप्रश्नाधिकारे साधिता साधितास्ततः तथैव चन्द्रस्वष्टापक्रमभागैर्याम्योत्तरवृत्तस्थे चन्द्रे तन्मध्यच्छाया साध्या शशिवद् भौमादीनां नक्षत्राणां च स्वककुब्वशात् स्पष्टापक्रमादवशात् स्पष्टपक्रमांशैश्छाया सध्येत्यर्थः॥८॥ वि. भा.-शशाङ्कस्या (चन्द्रस्य) ऽङ्ग वत् (विमध्यच्छाया साधन सदृशैव) स्थापक्रमभागैःस्फुटक्रान्त्यंशैः)छाया साध्या ऽथद्यथा त्रिप्रक्षाधिकारे मध्यान्हकाले (याम्योत्तरवृत्तस्थे रवौ)क्रान्त्यक्षांश संस्कारेण रवेर्नतांशा उन्नतांशाश्च साधितास्ततो- ऽनुपातेन मध्यच्छाया साधिता तथैव याम्योत्तरवृत्तस्थिते चन्द्रे तत्स्पष्टक्रान्यंशैर्मध्य च्छाया साधनीया, भौमादीनां ग्रहाणां शशिवत् (चन्द्रच्छायानयनवल) छायासाध्या, ऋक्षाणां (नक्षत्राणां) स्वककुब्वशत् (पष्टकान्तिदिवशत् स्पष्टान्यंशं २छयासाध्येति.॥८॥ । अत्रोपपतिः। चन्द्र भौमादीनां सर्वेषां ग्रहाणां नक्षत्राणां च छाया साधनार्थं सर्वथैवैक युक्तित्वात्सुगमेतिसिद्धान्तशेखरे'स्त्रक्रान्तिभागैः शशिनो दिनार्धच्छायामृतीभास्कर वत् प्रसाध्ये । भौमादिकानां च नभश्वराणां शशांकवत् स्वधं वकाच्च भानाम्” श्रीपतिरेवं कथितवान्.॥८॥ भब मध्यच्छाया के सघनप्रकार को कहते हैं । से हि. भा. रवि के मध्यच्छायानयन के सदृश ही चन्द्र के स्फुटान्यंश से मध्यच्छाय साधन करना अर्थात् जैसे त्रिप्रक्षाधिकारों में मध्यान्ह काल में (याम्योत्तर वृत्त में रवि के रहने से) झान्यंश और अक्षांश के संस्कार से रवि का नतांश और उन्नताँझ साघन किया गया है और उससे शङ्क्वनुपातद्वारा मध्यच्छाया का साधन किया गया है उसी तरह याम्योत्तर वृत्त में चन्द्र के रहने से उनके स्पष्ट सन्त्यंश से मध्यच्छाया का साधन करना पाहिये । चन्द्रच्छायानयन के सदृश हो मङ्गलादि ग्रहों के छाया साधन करना, नक्षत्रों के स्पष्ट झलन्ति दिशावश से स्पष्ट प्रकान्यंश से छाया साधन करना चाहिये. इति । चन्द्र गौर भौमादि सब ग्रहों के तथा नक्षत्रों के छाया साधन सर्वथा एक ही युक्ति से होने के कारण सुगम ही हैं, सिद्धान्त शेखर में "स्वन्ति भागैः शशिनो दिना भैमी धृती इत्यादि में"औपति इस तरह रहते हैं क्षति ।
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