पृष्ठम्:ब्राह्मस्फुटसिद्धान्तः भागः २.djvu/४८९

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४७२ ब्राह्मस्फुटसिद्धान्ते प्राक् तद्नस्तदनु तदधिकश्चेदुक्तत्र तत्र कालः ” ऽनेनाऽऽचार्योक्तानुरूपमेवोक्त मिति ।। ८ ।। अब गूहों के नित्योदयास्त साधन को तथा चन्द्रोदय के लिये विशेष कहते हैं । हि. भा. -तातालिक गृह और लग्म से असकृ कर्म द्वारा प्रतिदिन उदय और अस्त साधन करना अर्थात् जिस समय गृहदत घटी ज्ञान करना हो उस समय के लग्न (तात्कालिक लग्न) तथा गृहोदय लग्न साधन कर दोनों के अन्तर्गत घटी साधन कर उन (साबित घटी) से गृह को चलाकर उसके फिर उदयलग्न साधन कर तात्कालिक स्थिर लग्न से पुनः इष्टघटी साधन करना, इसतरह असकृच् (वारंवार) करना, एवं अस्तकाल ज्ञान के लिये अस्तलग्न (सषड्भास्त लग्न) से कर्म करना चाहिये । इस तरह चन्द्र दर्शन दिन प्रथम से पूणिमा पर्यन्त इष्ट दिन में चन्द्र के सूर्यास्त से त्रा सूर्योदय से अस्तमय काल और औदयिक काल साधन करना अर्थात् सूर्यास्त पहले वा पीछे कितनी इष्ट घटी में चन्द्रोदय वा चन्द्रा स्त होता है वा सूर्योदय से पहले या पीछे कितनी घटी में चन्द्रोदय वा चन्द्रास्त होता है ये सब साधत करना चाहिये इति ।। ८ ।। यदि सषड्भ (छः राशि से सहित) रवि से चन्द्र अल्प हो तब सूर्यास्त से पहले चन्द्र उदित होते हैं । यदि सषड्भ रवि से चन्द्र अधिक हो तब सूर्यास्त के बाद चन्द्र उदित होते हैं वहां कालज्ञान "ऊनस्य भोग्योऽघिकभुक्तयुक्तो मध्योदयाख्यः” इसी के अनुसार होता है, सिद्धान्त शेखर में श्रीपति ने भी ‘उदयति सममस्तं गच्छता प्राक् तदूनः" इत्यादि से आचार्योक्तानुरूप ही कहा है इति ।। ८ ।। इदानीं सूर्यासन्न भावेन चन्द्रोदयास्तज्ञानमाह । उदयास्तमयाविन्दोः कालांशैरर्कसंमितैः कय । होनत्वं त्वविकत्वं तदन्तरे योगकालः स्यात् ueu सु० भा०–अर्कसंमितैः कालांशैरर्थाद् द्वादशकालांशैरिन्दोरचन्द्रस्योदयास्त- मयौ साध्यौ। अत्रपठितकालांशेम्य इष्टकालांशानां यद् िहीन्त्वं वाऽधिकत्वं भवेत् तदा तदन्तरे तयोः पठितेष्टकालांशयोरन्तरे योगकालो योगवद्रहयोगवत् कालः स्यादिति सप्तमश्लोकेन स्फुटोऽयं इति ।। ९ ।। वि- मा–इन्दोः ( चन्द्रस्य ) अर्कसंमितेरर्थात् द्वादशतुल्यैः कालांशै रुदयास्तमयौ स्रध्यौ। पठितकालांशेभ्य इष्टकालांशस्य यदि हीनत्वं (अल्पत्वं)