पृष्ठम्:ब्राह्मस्फुटसिद्धान्तः भागः २.djvu/४८७

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४७० ब्राह्मस्फुटसिद्धान्ते "तात्कालिकाभ्यां रविदृग्ग्रहाभ्यां मुहुः कृतास्ते स्फुटतां प्रयान्ति” इति भास्करोक्त श्रीपत्युक्तयनुरूपमेवेति, तथोदयास्तदिनादेर्गतैष्यता प्रतिपादनं सिद्धान्तशेखरे “कथितसमयांशेभ्योऽभीष्टा भवन्ति यदाधिका विगत उदयो भावी चास्तस्तथाऽपरथाऽल्पकः। उदयति सितो वक्र यातऋतुभिरिहांशकै: समयजनि तैरेवं केचिद् वदन्त्यपरे त्रिभिः” चैवमस्ति, वक्री शुक्रश्चतुभः कालांशैरुदयतीति केचिद्वदन्ति, अपरे त्रिभिः कालांशैर्बक्री शुक्र उदयतीति वदन्ति, परमिति केषां केषां मतमिति न ज्ञायते, सूर्यसिद्धान्त-लल्लसिद्धान्तादिषु कालांशा आचार्योक्त सदृशाः श्रीपत्युक्तसदृशा वक्तास्तदा केचित्, अपरे इत्युक्तया केषां बोधो भव तीति ग्रन्थान्तर दर्शनेन स्फुटं भविष्यतीति ॥ ७ ।। अब उदय और अस्त के गतैष्य दिनानयन को कहते हैं। हैि- भा.-पठित कालांशे और इष्ट कालांश के अन्तर कला को ग्रह और रवि के गत्यन्तर से भाग देन, ग्रह के वक़ी रहने से ग्रह और रवि के गतियोग से भाग देना, लब्ध दिन पठित कालांश से इष्टकालांश अधिक रहे तो उदय में गतदिन और पठित कालांश से इष्टकालांश अल्प रहे तो एष्यदिन समझना चाहिये । अस्तविचार में पठित कालांश से इष्ट कालांश अल्प रहने से गतदिन और पठित कालांश से इष्टकालांश अधिक रहने से एष्यदिन समझना चाहिये । लब्ध दिनों से तात्कालिक दृग्ग्रह और रवि से पुन: तात्कालिक इष्ट कालांश साघन करना, इन (इष्ट कालांश) से पुनः पूर्ववत् गतैष्य दिनानयन करना, इस तरह असकृ कर्म करते रहना जबतक कि बिलकुल ठीक न हो जाय इति ॥ ७ ॥ उपपत्ति । ग्रह का उदय पहले हो गया हैं या पीछे होगा इस के लिये पठित कालांश और इष्ट कालांश का अन्तर करके अनुपात करते हैं यदि ग्रह और रवि की गत्यन्तर कला में एक दिन पाते हैं तो कालांशान्तर कला में क्या इस से जो दिन प्रमाण आता है उतने दिन करके पठित कालांश से इष्ट कालांश के अधिक रहने पर उदयगत होता है अन्यथा भावी होता है, अस्त विचार के लिये पूर्ववत् अनुपात से जो दिन प्रमाण आर्वे उतने दिनों में पठित कालांश से इष्टकालांश के अल्प रहने पर अस्त गत होता है, अन्यथा एष्य (भावी) होता है । सिद्धान्त शेखर में श्रीपति “उक्तोनाधिककालभागविवरं राशेः कलाभि १८०० हैतं ” इत्यादि संस्कृ तोपपत्ति में लिखित इलोक से उदय और अस्त के दिनानयन' कहे हैं। सिद्धान्त शिरोमणि में “उक्त स्य ऊनस्यघिका यदीष्टः खेटोदयो गम्यगतस्तदा स्यात्’ इत्यादि से भास्कराचार्य ने श्रीपयुक्त के अनुरूप ही कहा है, उदय दिन तथा अस्तदिनु की गतैष्यता का प्रतिपादन सिद्धान्त शेखर में ‘‘कथितसमयांशेम्योऽभीष्टा भवन्ति यदाधिका” इत्यादि इस तरह किया गया है, वक्री शुक्र चार कालांश में उदित होते हैं यह किसी आचार्यों का मत है, अपर (दूस) आचार्य कहते हैं कि वक्री शुक्र तीन कालांश में उदित होते हैं। लेकिन ये मत किन