पृष्ठम्:ब्राह्मस्फुटसिद्धान्तः भागः २.djvu/४६१

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४N आह्मस्फुटसिद्धान्ते यहां स्पाशिक लम्बनlन्तरघ=लं, इन दोनों का अन्तर करने से स्पर्शकाल के वाय इष्टकाल ==इ> (गर्भायदघ-कोटिच-लम्बनान्तरत्र)-(गर्मीयदष-स्फुस्थि३व्र-लं,) यहां लम्बानान्तरघ=इलंघ, तब गर्भापदघ–कोटिघ--इलंघ-गर्भायदघ+स्फुस्थि३घ +लं. स्फुस्थि३ष-कोप-इलंघ’लं=इ, अत: स्फुस्थि३ घ-इलंघ इ4लं,= कोटिघ अष्टदर्शान्तघ=गर्भायदघ--लं,, यहां लं,=रवि और चन्द्र का स्पष्टलस्ननान्तर, तथा ‘स्फुटातथ्यन्ताल्लम्बनमसकृत्’ इत्यादि से स्पर्शकाल= गर्भायदघ -ङस्थि३घ-त्र, दोनों का अन्तर करने से स्पादोिकस्थित्यर्धा =पस्थि३-गर्भायदर्वी-लं,-( गदघ---स्फुस्थि३घ-लं,)

गर्भायदप - लं, -‘यदघ+ऋस्थि३घ+लं,=स्फुस्थि३+लं, ,

स्पाशिकस्थि३घ लं,-लं,)इ तब इस अनुपात से जो फल होता है वह यदि लें,-इचंघ माना जाय तब स्पयि? (ल,-ल, )इ कोटिघटी=कोच=स्फुस्थिईघ+ ' -इ= स्पस्थघ स्फुस्यिथेषस्सस्यिर्धघ+(लं,जलं,) इ-पस्यिॐघ•ई सस्थिध कुस्थवxपस्थिच+इ £(लं,लं,)-स्पस्थिघ स्वस्थिष == = = = = _फुस्थिभूवKसपस्थि३६-३४स्फुस्थि६ _ऋस्थिईय (पस्थुिष-इ) स्यस्थिघ स्पयिषं गत्यन्तरकxकोटिघ = कटघ , ••crea B=' =कोटिक, उरथापन करने से स्थिभूख (पस्थिङ्घ-ङ),गत्यन्तरक-कोटिघ स्पस्विघ ६० स्कृस्यघ स्फूस्थिरेंच: (१) =xइष्टनस्थिईफलाः =“ स्पस्यश्च चन्द्रग्रहणचकोटि-कोटिझला स्पस्थश्च