१४ ब्राह्मस्फुटसिद्धान्ते
परस्पर समयष्टित्राग्रगतरेखाजनितत्रिभुजोपरिगत वृत्तकेन्द्र में दृष्टिस्थान से जा दृटिसूत्र भ्रावेगा उसको बढ़ाने से धाधार वृत्त केन्द्रगत भो होता है ये सब गोल ही धर्म है क्योंकि ये सब बातें गोलात्मक पदार्थ हो में हो सकती हैं। त्र्प्राचार्य ग्रहपिण्डों में गोलत्व स्वीकार कर पूर्व-कथित गोलीय धर्म देखते हैं इसलिए ग्रहपिण्डों में गोलत्व सिध्द हुआ। वेध से ग्रह्विम्बीय कएग कैसे होता है इसे इसी ग्रन्थ में मङ्गलगुरु पोर शनि की पीत्रोच्चोपपत्ति स्थल में देखना चाहिए। सब ग्रहों के विम्बीय कए मतुल्य उपलब्ध हुए इसीलिए ग्रहों के कक्षानिवेश ऊर्ध्वाधर क्रम से (जिस ग्रह का फरमान जिस दूसरे ग्रह के कमान से भ्रधिक उपलब्ध हुत्र्प्रा उसकी कक्षा उस दूसरे ग्रह की कक्षा से उपरिगत हुई इसके अनुसार ) चन्द्र, बुध, शुक्र, रवि, कुज. गुरु, क्ष्प्रोर नक्षत्रों की कक्षायें चन्द्र से उपरिक्रम से सब माचायों ने अपने-अपने सिद्धान्त ग्रन्थों में लिखी हैं।
'सहग्रहेः' इसकी युत्ति।
भूगर्भ से इष्टत्रिज्या व्यासार्थं से जो गोल होता है, वह भगोल है। धुवसूत्र रूप यष्टी में बन्धे हुए भचक्र मोर भगोल के साथ-साथ माने-जाने के कारएग उनसे मिले हुए मन्दगोल भौर शीघ्रगोल ( जो ग्रहों के माधार गोल हैं) के भी भ्रमएगादि उनके साथ ही होते हैं यह सिद्ध हुमा ॥+
इन उपपधियों से ' घ्रु वताराप्रतिबद्धज्योतिश्चक्रम्' इत्यादि माचायोंक्त सब सिद्ध हुआ ।
ध्रुवसूत्रयष्टी के आधार पर पश्चिमाभिमुख भच्म्क्र भ्रमएग होता है। उस (धु वयष्टी) के मध्य में ब्रह्मा ने कदम्बसूत्र इस तरह बांध दिया जिससे वह कदम्बसूत्र भचक्र के पश्चिमाभिमुख भ्रमएग में विघ्न नहीं करते हुए ब्रह्मा के हाथ के प्राघात से उत्पन्न भ्रमएग में भचक्र के पृष्ठ में कदम्ब स्थान में खचित (जड़ा हुपा) होकर स्थिर हो इसलिए घ्रु वसूत्र घ्रु वस्थान से कथितवेग (गति) की समाप्ति तक पूर्व और पश्चिम तरफ २७ मंश पर्यन्त भचक्रपृष्ठ को घिसता है अतः घ्रु ध्रुवतारा स्थिर नहीं है केवल ध्रुवस्थान ही स्थिर है यह सिद्ध हुमा, इसलिए 'तदन्ततारे च तथा घ्रु ध्रुवत्वे' यह भास्करोत 'ध्रुवतारां स्थिरां प्रत्ये मन्यन्ते ते कुबुद्धयः' यह कमलाकरोक्त भी युक्ति:सङ्गत है|
इदानीं कालेऽब्दस्य क्षेत्रस्य भगरणस्य च तुल्यां विभागकल्पनां प्रदर्शयन्नाह ।
प्राएगविनाड़िकाक्षेओ षड्भिघंटिका विनाड़िका ष्टया | घटिका पटचा दिवसो दिवसानां त्रिशता भवेन्मासः ॥ ५ ॥
मासा द्वादश वर्ष विकला लिप्तांश-राशि-भगरगान्तः । क्षेत्रविभागस्तुल्यः कालेन विनारिकाचेन ॥ ६ ॥