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पृष्ठम्:ब्राह्मस्फुटसिद्धान्तः भागः २.djvu/३०

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मध्यमाधिकारः स्थान में हक्षेप लेकर आगे चन्द्र भगरण की उपपत्ति में प्रदर्शित नाड़ीवृत्तघरातलान्तर ज्ञान उससे ग्रहगोलीय क्रान्ति के आनयन के लिए जो युक्ति है वही यहां भी समझनी चाहिए किन्तु यहां 'लम्बरेखा अन्तर = ० उपलब्ध होता है; अतः सिद्ध हुम्रा । अब रेवती में शराभाव क्यों होता है इसका निर्णय करते हैं । गोलद्वय (वेबगोल और भगोल ) के केन्द्रों से कदम्ब में भौर रेवती में जो रेखा लाये वे दोनों समानान्तर हैं अर्थात् कदम्बगत रेखाद्वय समानान्तर है तथा रेवतीगत रेखाद्वय भी समानान्तर है। इसलिए भूकेन्द्रलग्नकोण = स्थिरगोलीय या भगोलीय शरकोटि = दृष्टि- स्थान लग्न कोण == वेषगोलीय शरकोटि, अतः इसको नवत्यंश में घटाने से शरचाप = ० यह उपलब्ध हुआ इस लिए रेवती का शराभाव सिद्ध हुआ । -- - श्रय प्रकृत विषय (अयनांश ) का आनयन करते हैं । गोलद्वय केन्द्रों ( भूकेन्द्र और दृष्टिस्थान ) से ध्रुव में और रेवती में रेखायें लाये तब गोलद्वय केन्द्रलग्न कोणमान बुज्याचाप बराबर होते हैं (क्योंकि गोलद्वय केन्द्रों से ध्रुवगत रेखाद्वय समानान्तर है तथा रेवतीगत रेखाद्वय भी समानान्तर है ) इसलिए त्रि X ज्याक्रां ज्याजि = ज्याभु, इसके चाप करने से रेवतो का भुजांश = प्रयनांश, यह परम ( परमायनांश) = २७° होता हैं । ९० – रेवती द्यज्याचाप - रेवती क्रान्ति, = तब = यहां प्रसङ्गवश आये हुए दोनों गोलों के लग्न, वित्रिभट्टक्षेपचाप, अक्षांशचाप आदि की समत्व उपपत्ति स्वयमेव समझनी चाहिए | अब ग्रहों की पूर्वाभिमुखगति क्यों है इसका निर्णय करते हैं । प्रथमपद में ग्रह के रहने से उनकी तात्कालिक क्रान्ति की वृद्धि, द्वितीयपद में हास ( क्षोणत्र ) तृतीयपद में प्रथमपद की तरह और चतुर्थपद में द्वितीयपद की तरह स्थिति वेष से देखते हैं । इसलिए ग्रहों की पूर्वाभिमुख गति है यह सिद्ध हुम्रा | और ग्रहों की मगरण- पूर्ति बहुत दिनों में होती है तथा प्रवह को भगरगपूर्ति एक ही दिन में होती है इसलिए प्रवहगति की अपेक्षा ग्रहगति को अल्पता भी सिद्ध हुई। अब ग्रहपिण्डों में गोलत्व है या नहीं और ग्रहों की स्थिति ऊर्ध्वाधर क्रम से क्यों है इनके लिए विचार करते हैं | एक गोल को कहीं पर रखकर दृष्टिस्थान में मूल (जड़ ) मिलित समान यष्टित्रय को इस तरह रखना चाहिए जिस से दृष्टिसूत्र सत्र गोल के स्पर्शकारक (याने गोल स्पर्शरेखायें) हो और वे दृश्यवृत्ताघार समसूची करगंगत हो । यष्टियों के अग्रों में परस्पर रेखा करने से जो त्रिभुज बनता है उसके ऊपर जो वृत्त होता है उसका घरातल साधारवृत्त घरातल के समानान्तर है और पूर्वकथित समसूची के कर्णायों में जाता है । .