२६२ ब्राह्मस्फुटसिद्धान्ते त्रि.ज्या शिष्य त्रिज्याने, क्रान्ति, =अग्रा, •=प्रग्रा दोनों का अन्तर करने से '•' ज्याल ज्याल ज्याल त्रिज्या क्रां ज्याच ज्यलं - कल (ज्याक्रां-ज्यानां) =अग्न८मग्रा, = भग्नान्तर-भुजान्तर, इसको छायाकर्ण गोल में लाते हैं। अनुपात करते हैं यदि त्रिज्याव्यसाधं में यह अग्रान्तर पाते हैं त्रि.छाक, तो आयकर्ण व्यासार्ध में क्या इससे छायाकर्ण व्यासार्ध में अग्रान्तर प्राया :- ज्यालं.त्रि (आक्रां-यहां )= क (ज्याक्रां-ज्यात)=छायाकर्णगोल में अग्रान्तर इससे पूर्व- ज्यल बिन्दु के चलनवश से वास्तव पूर्वापर रेख की समानान्तर रेखा का ज्ञान होता है, केन्द्र विन्दु से उसकी समानान्तरा रेखा वास्तव पूर्वापर रेखा होती है, पूर्वापर रेखा की समानान्तर रेखा के अधं बिन्दु से उसके ऊपर लम्बरेखा या पूर्वापर रेखा के अर्च बिन्दु (केन्द्रबिन्दु) से उसके ऊपर लम्बरेखा दक्षिणोत्तर रेखा होती है, सिद्धान्तशेखर में "आयानिर्गमनप्रवेशसमयार्कयन्तिजीवान्तरं’’ इत्यादि संस्कृतोपपत्ति में लिखित श्लोक श्रीपति प्रकार को देख ( कर भास्कराचार्य ने ‘तकलपम त्रयोस्तु विवरात्र इत्यादि। सिद्धक्षशिरोमणि में कहा है । लेकिन छायाकर्ण वृत्तरिबि में अग्रान्त र या भुजान्तर दान देना अनुचित है इसलिए श्रीपत्यादि कथित प्रकार से स्फुट पूर्वापर दिशा का ज्ञान ठीक से नहीं हो सकता है, अतः वास्तव ज्ञान के लिए युक्ति बतलाते हैं। यहाँ संस्कृतोपपत्ति में लिखित (क) क्षेत्र को देखिये । पू= स्थूल पूर्वेदिंदा, प= स्कूल पश्चिम दिशा, पूप रेखा वास्तवपूर्वापर रेखा की असमानान्तर रेख, पू बिन्दु से मग्नान्तर तुल्य या भुजान्तर तुल्य पूर्णज्या रूप रेखा (एन) दिये (रे. ४ अध्याय युक्ति से) पन रेखा कीजिए, पुनप=&०, तब यह पन रेखा वास्तव पूर्वापर रेखा की समानान्तर होती है, केन्द्र बिन्दु से इसकी समानान्तर रेखा वास्तव पूर्वापर रेखा होगी, इस तरह वास्तविक पूर्व पश्चिम दिशश्नों का ज्ञान हुआ, केन्द्र बिन्दु से पूर्वापर रेखा के ऊपर लम्ब रेखा दक्षिणोतर रेखा होती है. इस तरह दक्षिणोत्तर दिशाओं का भी ज्ञान हुप्रा इति ।।१।। अत्र विशेषविचारः पूर्वापरयोबिन्द्व तुल्यच्छायामयोदिगपराऽऽद्यः । पूर्वाऽन्यः क्रान्तवशात् तन्मध्याच्छकुतलमितरे ।।१।। तुल्यच्छायाग्रयोः पूर्वापरयोः पूर्वापरकपालयोः यौ बिन्दू भवतस्तत्राञ्चः पूर्वरूपाक्यो बिन्दुः अपरा प्रतीची दिग् भवत । अन्यः पश्चिमकपालीयो बिन्दु दूर्वा द्विम् स्यात् । अवदितदुक्तं भवति । समायां भुवि मध्याह्नच्छायातोऽघिक
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