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पृष्ठम्:ब्राह्मस्फुटसिद्धान्तः भागः २.djvu/१८६

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१६४ उ=मन्दोच्चम् । ग्र=मन्दप्रतिवृत्ते ग्रहः। भू–भूकेन्द्रञ्च । ज= =ब्रह्मोलकेन्द्रम् । भूग=मन्दान्यफलज्या । ग्रन=तात्कालिकायफलश्य =नच =भुज । भूग्र= ताफलकनन्दक्रणः । मन्दभुजफलम् । प विदुतो भूर रेस्त्रयाः नान् पग्र रेखा कार्या, ५ त्रिदुत एव जन रेखायाः समसरा पश रेवा कार्य नै रेखा काय । पय=मन्दफलज्य, अथ भूग्रन, भूम । त्रिभुजयोः सुझाव ग्रनxष तात्कालिकान्त्यफज्या x fत्र = = पक्ष = पठितान्यफलज्या = ऍन, भृग्र तात्कालिकमन्दरों अतोभूग्र=पठितमन्दकः । प्रग=पठितमन्दकर्णाग्नयभुजफलम्=क्षयः मंफलज्या ग्रर > पय दो तात्कालिकमन्दकणीयभुजफल > मन्दफलज्या अत एव मन्दभुजफलचप मन्दफल न भवितुमर्हति, किन्तु पठिन मन्दकणीयमन्दभुजफलचाए मन्दफलं भवितुमर्हत्यत आंत्रयुक्त ‘चापं मन्दफलं' मिदं न युक्तम् । सिद्धान्तशेखरे श्रीपत्यु ‘दोः फलस्य च धनुः कलादिकं जायते मृदुफल नभः सदाम्' क्तमिदं ‘मृदुदोः फलस्य चापं बुधा शोत्रभुजफल Xfत्र मन्दफलं वदन्ति' भास्करोक्तमिदं चऽऽचार्योक्तानुरूपमेव। एव च शीघ्रकर्ण शीघ्रफलज्या, एतच्चापं शोस्रफलं भवेत् । श्रीपतिना ‘दोः फलत्रिगुणयोरभिघाता त्कर्णलब्धयनु राशुफल' स्या' ऽप्यनेनाऽऽचार्योक्तानुरूपमेव कथ्यत इति ॥१७ अब मन्दफल और शीघ्रफल कहते हैं हि. भा.-मन्द भुजफल का मन्दफल होता है, यह पूवंसाधित फलट्टः के योग और अन्तर वश से घन वा ऋण होता है. पूर्वागत शीघ्रभुजफल को त्रिज्या से गुणा कर शीत्र कर्ण से भाग देने से जो लब्धि होती है उसका शीघ्रफल होता है । १७ ॥ यहां संस्कृतोपपत्ति में लिखित (क) क्षेत्र को देखिये। तात्कालिक मन्दकीय भुजफल का चाप मन्दफल नहीं होता है, किन्तु पठित मन्दकणशीिय भुजफल का चाप मन्दफल होता है इसके लिये अधोलिखित युक्ति है। उ=मन्दोच, ग्र=मन्दप्रतिवृत्त में अह, भू=भूकेन्द्र, ज=ग्रहगोलकेन्द्र, भूज=मन्दान्त्यफलज्या, ग्रन=तात्कालिकमन्दा- न्त्यफज्या=तच=भूज, भूग्र=तात्कालिकमन्दकणं, अर=मन्दभुजफल, प बिन्दु से भूर रेखा की समान्तरा रेखा पर्ने, प बिन्दु से ग्रन रेखा की समान्तरा । पश' रेखा कीजिये, भूग रेखा कीजिये पय=मन्दफलज्या, भूग्रन, भुपश दोनों त्रिभुज सजातीय हैं इसलिये अनुपात करते हैं। प्रनx भूप - तात्कालिकमन्दान्त्यफलज्यx त्रि पाठितमन्दान्त्यफलज्याः प्र तात्कालिकमन्दफणं =