स्पष्टाधिकार १६१ भूरग्रम मन्दीन्द्रज्या = मन्दन्त्यज्य त्रिभुजयोः सजात्यादनुपातः= त्रि मन्दकेज्या x मन्दपरिधि ग्रन= मन्दभुजफलम् = मन्दन्यफलज्या_मन्दपरिधि, म विन्डै केन्द्र मत्वा मन. मग्दान्त्यफलज्या- ३६ व्यसाधन यद् वत तन्मन्दनीचोच्चवृत्त स एव मन्दपरिचिः तथाभxश्रम्=ाम= मन्दकेकोज्या मन्दान्यफलज्या_मन्दकेकोज्यादै मन्दपरिधि ३६॥ मन्दकोटिफलम् । एवं शीघ्रकेद्रज्यादिवशेन शीघ्रभुजफलकोटिफले भवतः । उज==प्रथमपदम्, जय=द्वितीयपदम् । यपः =तृतीयपदम् । चतुर्थपदम् उप=। जउप=मकरादिकेन्द्रम् । जयप=कक्र्यादिकेन्द्रम् । भूम+लम=त्रि मन्दकोटिफल भूल-मन्दनीचोच्चवृत्तीयस्पष्टा कोटिः। एवं चतुर्थपदेऽपि भवति, द्वितीयतृतीय पदयोः त्रि-मन्दकटिफ=मन्दनीचोच्चवृत्तीय स्पष्टा कोटिरिति भुजफलकोटिफल स्वरूपविन्यासेनैव तत्र स्फुटं भवत्येतावताऽऽचार्योक्तं सम्यगुपपद्यत इति ॥१४॥ अब भजफल और कोटिफुल के साधन तथा स्पष्टा कोटि को कहते हैं हि. मा.-कैन्द्रज्या और केन्द्र कोटिज्या को स्पष्ट परिधि से गुणा कर भांश ३६० से भाग देने से मुजफल और कोटिफल होता है। प्रथम पद और चतुर्थ पद (मकरादि केन्द्र ) में त्रिज्या में कोटिफल को जोड़ने से स्पष्टा कोटि होती है, द्वितीय पद और तृतीय पद (कयदि केन्द्र) में त्रिज्या में कोटिफल को घटाने से स्पष्टा कोटि होती है। यहां मन्द केन्द्रज्या, मन्दकेन्द्र कोटिज्या, और मन्द परिधि के सम्बन्ध से मन्दभुजफल और मन्द कोटि फल होता है, तथा शीघ्रकेन्द्रज्या, शीघ्रकेन्द्र कोटिज्या और शीघ्रपरिधि के सम्बन्ध से शीघ्र भुजफल और शीघ्रकोटिफल होता है इति ।।१४। यहाँ संस्कृतोपपत्ति में लिखित (क) क्षेत्र को देखिये । भू= भूकेन्द्र, भू बिन्दु से त्रिज्य ध्यासाधे से वृत्त कक्षावृत्त होता है, न=प्रहगोल केन्द्र, न बिन्दु से उसी त्रिज्या व्यासाघं से जो वृत्त होता है वह प्रतिवृत्त है, भून,से ऊध्र्वाधर रेखा भौर =अन्यफलज्या भू, न बिन्दुओं तिर्यग्ग्रेखों कीजिये। उ=प्रतिवृत्त में उच्चस्यान । उउः = कक्षावृत में उन्धवस्थान । अ= प्रतिवृत्त में मध्यमग्रह । म=कक्षावृत में मध्यमग्रह । वघत भूम रेखा के ऊपर ग्र बिन्दु से लम्ब= प्रल=सुजफल, मल= कोटिफल, प्रम=अन्यफलज्या,= रच= भून, भूम=त्रिज्या। , ग्रण=केन्द्रज्या=, प्रच=फेन्द्रकोटिज्या=मर भूमर, मगध दोनों त्रिभुष सजातीय हैं।
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