पृष्ठम्:ब्राह्मस्फुटसिद्धान्तः भागः २.djvu/१६२

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१४५ (ज्याइ -इ) २ (ज्याइ -)=पथ्या +अत्रज्या, अत्र त्रि= ३४३ , उग्र अत्र पृष्ठज्य शोधनेनाग्रज्या भवेदग्रज्याशोधनेन च पष्ठज्या भवेदेतैन तदीय मूत्रमवतरति । जीवा स्वसप्तारियुगांशहीना द्विघ्नी च पूर्वज्यका विहीना। स्यादग्रजीवा वृहतीति सर्वा आसन्नजीवा द्वयतो भवन्ति । अस्याऽऽचर्यस्य मते त्रिज्या=३२७०,एतत्रिज्यावशेनापि प्रथमोक्रमज्या = ३४३८ त्रिज्योत्पन्नप्रथमोक्रमज्या=७, अतः पूर्वोक्तमुत्रेणाऽऽचार्योक्तज्यासु क्यापीष्टज्यया तत्पूर्वाग्निमज्ययोर्योगज्ञानं भवेदेवेति ॥३-८॥ अब स्पष्टीकरणादि सब ग्रहगणितों के ज्यागणित के अधीन होने के कारण पहले अर्धज्या को कह कर उक्रमज्या को कहते हैं। हि. भा–वृत्त परिधि के चतुर्थांश में २२५, २४२२५ , ३ ४ २२५’०००००००० . चापों की चौबीस क्रमृज्यार्थे भर उत्क्रमज्यायें हैं जो संस्कृत विज्ञान भाष्य में लिखी गई हैं, उन्हीं को यहां भी देखिए । चौबोस अंश की ज्या परमक्रान्तिज्या है, इसकी उपयोगिता बहुत स्थानों में होने के कारण उसकी संख्या १३२६ पठित की गई है इति ॥३-८॥ उपपत्ति वृत्त परिघ्यंश ३६० के चतुर्थ श ९०° में चौबीस संख्यक क्रमज्यों और उत्क्रमज्यायें (€०४६°=२२५ ’= प्रथमचाप २२५, २X२२५’, ३४२२५'Sripathy K N (सम्भाषणम्) ०७:२०, ११ दिसम्बर २०१७ (UTC)२४२२५ २४ चापों को ज्योत्पत्तिविधि से ३२७० तुल्य त्रिज्या में आचार्य ने लाकर पाठ किया है, जैसे भास्कराचार्य के मत में ३४३८ त्रिज्या में स्वल्पामर से प्रथमज्या=२२५, तब अनुपात करते हैं यदि ३४३८ तुल्य त्रिज्या में २२५ तुल्य प्रथमज्या पाते हैं तो ३२७० त्रिज्या में क्या, इस अनुपात से आचायत प्रथमज्या आती है, २२५४३२७० = आचायोंक्त प्रथमज्या, यहां हर और भ.ज्य में ही इससे अपवर्तन करने से ३४३८ २५४३२७०. =२५४१६३५ १६३५४०८७५ - २१४ ,,= २१४ स्वल्पान्तर से प्रचायक ३८२ १६१ १६१ १६१ प्रयमया, इसी ह तरह अवशिष्ट (द्वितीयादि) क्रमपायें और उत्तमज्यायें आती हैं, पठित ज्यायों से ज्यासाधन विधि से चौबीस अंश परमन्पंख की ज्या सधन करने से १३२e एततुल्य होती है। सिद्धान्तशिरोमणि को टिप्पणी में संशोधक प्रतियों में अटक कणि -