पृष्ठम्:ब्राह्मस्फुटसिद्धान्तः भागः २.djvu/१२१

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१०४ ब्राह्मस्फुटसिद्धान्ते अनयोरन्तरम् ३६०४कल्पबुश।उभ-४ ककु=कल्पेऽन्त रांशाःततोऽहर्गणस-अन्तरांशाः= (३६०४ कल्पबुशीउभ-४ककु) अहर्गण— १२ अहर्गण ककु १२ ककु ३६० कबुझाउभ-४ ककु १२ अहुर्गण १३ १२ अहर्गण अतोऽहर्गणसम्बन्धिवास्तववुधशघ्रोच्चांशाः = ४ अहर्गण + -पण+ए एतेनाप्याचार्योक्तमुपपन्नम् ।।४el अब मध्यम कुज और बुधशीघ्रोच्च के आनयन को कहते हैं। हि..-- ११ अहर्गण .. ११ अहर्गण कला तथा अशादिब्धशीघ्रोच्च ८७५ ६ अहर्गेण = ४ अहर्गण +।।४७ll ६५ उपपत्ति 71 रूपतुल्य अहर्गण मानकर ‘महीमितादहर्गणात्फलानि यानि इत्यादि’ भास्करोक्तविधि से सुकुज के आचार्योक्त प्रकार से यदि मध्यमगति लाते हैं तो ३१' २६’१२८७ होती है, इतनी ही भास्करोक्त भी है, इस पर से विलोम विधि और खण्डगुणन सवर्णान आदि से प्राचायोंक्त मध्यम कुजानयन उपपन्न होता है ।४७।। बुधशीघ्रोच्चानयन के लिये विचार करते हैं। I + । पूर्वोक्त प्रकार से आचयोंक्त विधि से एक दिन में बुधशघ्रोच्च गति=४५। ३२१८२८ '" इससे अनुपात द्वारा बुधशी त्रोच्चांश= अहर्गण (४५३२५१८ २८")=४° प्रहर्गण+अहर्गेण ( ५३२१८ १८1२=" ) अब ५३२’१८।। २८ २८ ’’ ’’ इसका स्वरूपान्तर करते हैं ५३२१८ +२=।१८९१५ ५३२ =५॥३२फ़८५३२ॐ+ + २. २७७ =५३२+५३६० २७७ = ५ ३ ६०० २६०७७ = ५ +४००० २८८०० + २७७ -, २०७७ . ® e००८ ५ + ६०४६० २४०७७