पृष्ठम्:ब्रह्मसिद्धिः (मण्डनमिश्रः).djvu/२७८

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बक्षप्तिडकारकानुक्रमणिका

न कसे यौगपद्ये वा, उ

न च प्रवृत्तिनिष्ठत्वम्, पू

न च मानफलाद्भिन्नात्पू

न च मानावगम्यत्वम् , पू

न च भक्षः फल तस्य, उ

न च संबन्धसंबन्धः, उ

न च समवमत्रण, उ

च सर्वानियोगेन, उ

न न सापेक्षता नास्मिन्, उ ..

न चाग्रहणमेवैष, उ

न चेत्कुतस्त्यमेकत्वम् , उ

न तत्र यदि तद्वद्धिः, पू

न तत्सापेक्षमेषा चेत्, उ

न तादृशधेन भेद, पू

न तावद्वयमझात्म्य, उ

न दृष्टमच्छकस्यास्ति, उ

न दृष्टमात्राद् दुष्टार्थम् , उ

ने दृष्टादृष्टयोर्भदःउ

न द्वयात्मता भवेदेक, उ

ननु नाप्रुषार्यत्वम् , पू

ननु न विपरीतार्थ, उ

ननु प्रमान्तराधीन, उ

ननुत्पत्तिविधिः कर्म, पू

नन्वन्वितपदार्थत्वात्, पू

नन्वरूपावभासे स्यात्, उ

न पराणुद्यते दण्डैः, उ

न प्रवृत्तिनिवृत्तिभ्याम्, पू

पुट काण्ड. कारिका.

142 3 14B 158 4 140 3 184 । 85 30 119 3 105 (:2 15 80 16 140 3 129 95 52 142 3 141 64 19 187 8 119 19 14 6B 60 12 97 64 149 168 1873 122 64 18 157 २. 1863 114 101 BC 70 11B 96 156 149 107 15-3 152 ,