सामग्री पर जाएँ

पृष्ठम्:ब्रह्मसिद्धिः (मण्डनमिश्रः).djvu/२७९

विकिस्रोतः तः
एतत् पृष्ठम् अपरिष्कृतम् अस्ति
28
बक्षप्तिडकारकानुक्रमणिका

न बद्ध शब्दधीगम्यम् , उ

न भिद्यते न तद्भावः, पू

न भेदानान्मृजातउ

में भदा बस्तुन रूपम् , पू

न मागान्तरकथाथ, पू

न रूपसिद्धये तावद, उन पू

शब्दमात्रसापर्य,

नष्ठद्रद्युमत्येति, उ

न संनिहितगं तद, उ

न संसर्गः पदार्थानाम् , उ

न स कल्पयितुं शक्यः, पू

न स्वज्ञानादसत्यस्मिन् , पू

न हि कारजसझावे, पू

न हि पूर्वावमनून, उ

न हि मित्रार्यतंसर्ग, पू

न हि त्रीचिविषयम्

नाप्रहः प्राधकोऽभावःपू

नामा इतस्तथा स्यवत्, पू

नाइटेऽसंप्रयुक्ते वा, उ

नानात्वदर्थवता चेत, उ

नानावभासत चत्रम् , पू

नान्यग्रहातस्य भाव, उ

नान्योन्यसंश्रयाचद्यम् , पू

नाभावमिन्ना व्यवहृत, पू

नायं तदुपनीतार्य, पू

नास्तीति धीव्यवहनी, उ

नास्मिलयं नायमयम्, पू

नियोगानुप्रवेशोऽतः, पू

पुट. काण्ड. कारिका 1843 108 1492 169 97 6B 47 79 14 152 3 175 82 2B २ ८ । 91 40 45 111 89 104 3 85 1B9 3 127 14B 8 158 97 59 115 X 102 | 114 3 100 142 3 140 151 8 172 187 8 12B 20 61 15 92 42 104 8 79 50 142 141 9B 46 57 11 152 179