न बद्ध शब्दधीगम्यम् , उ न भिद्यते न तद्भावः, पू न भेदानान्मृजातउ में भदा बस्तुन रूपम् , पू न मागान्तरकथाथ, पू न रूपसिद्धये तावद, उन पू शब्दमात्रसापर्य, नष्ठद्रद्युमत्येति, उ न संनिहितगं तद, उ न संसर्गः पदार्थानाम् , उ न स कल्पयितुं शक्यः, पू न स्वज्ञानादसत्यस्मिन् , पू न हि कारजसझावे, पू न हि पूर्वावमनून, उ न हि मित्रार्यतंसर्ग, पू न हि त्रीचिविषयम् नाप्रहः प्राधकोऽभावःपू नामा इतस्तथा स्यवत्, पू नाइटेऽसंप्रयुक्ते वा, उ नानात्वदर्थवता चेत, उ नानावभासत चत्रम् , पू नान्यग्रहातस्य भाव, उ नान्योन्यसंश्रयाचद्यम् , पू नाभावमिन्ना व्यवहृत, पू नायं तदुपनीतार्य, पू नास्तीति धीव्यवहनी, उ नास्मिलयं नायमयम्, पू नियोगानुप्रवेशोऽतः, पू |
पुट. काण्ड. कारिका 1843 108 1492 169 97 6B 47 79 14 152 3 175 82 2B २ ८ । 91 40 45 111 89 104 3 85 1B9 3 127 14B 8 158 97 59 115 X 102 | 114 3 100 142 3 140 151 8 172 187 8 12B 20 61 15 92 42 104 8 79 50 142 141 9B 46 57 11 152 179 |
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