न कसे यौगपद्ये वा, उ न च प्रवृत्तिनिष्ठत्वम्, पू न च मानफलाद्भिन्नात्पू न च मानावगम्यत्वम् , पू न च भक्षः फल तस्य, उ न च संबन्धसंबन्धः, उ न च समवमत्रण, उ च सर्वानियोगेन, उ न न सापेक्षता नास्मिन्, उ .. न चाग्रहणमेवैष, उ न चेत्कुतस्त्यमेकत्वम् , उ न तत्र यदि तद्वद्धिः, पू न तत्सापेक्षमेषा चेत्, उ न तादृशधेन भेद, पू न तावद्वयमझात्म्य, उ न दृष्टमच्छकस्यास्ति, उ न दृष्टमात्राद् दुष्टार्थम् , उ ने दृष्टादृष्टयोर्भदःउ न द्वयात्मता भवेदेक, उ ननु नाप्रुषार्यत्वम् , पू ननु न विपरीतार्थ, उ ननु प्रमान्तराधीन, उ ननुत्पत्तिविधिः कर्म, पू नन्वन्वितपदार्थत्वात्, पू नन्वरूपावभासे स्यात्, उ न पराणुद्यते दण्डैः, उ न प्रवृत्तिनिवृत्तिभ्याम्, पू |
पुट काण्ड. कारिका. 142 3 14B 158 4 140 3 184 । 85 30 119 3 105 (:2 15 80 16 140 3 129 95 52 142 3 141 64 19 187 8 119 19 14 6B 60 12 97 64 149 168 1873 122 64 18 157 २. 1863 114 101 BC 70 11B 96 156 149 107 15-3 152 , |
पृष्ठम्:ब्रह्मसिद्धिः (मण्डनमिश्रः).djvu/२७८
दिखावट
एतत् पृष्ठम् अपरिष्कृतम् अस्ति
27
बक्षप्तिडकारकानुक्रमणिका