पृष्ठम्:बीजगणितम्.pdf/९९

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. ६२ बीजगणिते - इस नियम विना मूल लिया जायगा तो वह अशुद्ध होगा। इस प्रकार जो छोटी मूलकरणी उत्पन्न होगी उसको चतुर्गुण करो और उस चतुर्गुण मूलकरणीका जिन करणीखण्डों में अपवर्तन लगे वे रूपवर्ग में शोध्य अर्थात् घटाने के योग्य हैं ( इससे यह अर्थ निकलता है कि उक्त नियमानुसार करणीखण्डों को रूपके वर्गमें घटाने से जो मूलकरणी उत्पन्न होगी उस्से घटाये हुए करणीखण्ड अवश्य नि:शेष होंगे, यदि निःशेष न हों तो मूल अशुद्ध होगा ) और उन घटाये हुए करणीखण्डों में चतुर्गुण मूलंकरणीका अपवर्तन देनेसे जो मूलकरणी होंगी वे यदि शेषविधिसे न आ तो वह मूल असत् होगा | उपपत्ति - एक करणी होवे तो उसका वर्ग करके मूल लेनेसे रूपही होगा। दो करणी हों तो ' स्थाप्योऽन्त्यवर्गश्चतुर्गुणान्त्यनिघ्नाः-' इस प्रकारसे उनका चौगुना घात करणी होगी और उन दो करणियों का योग रूप होगा । तोन करणी हो तो उक्तविधिसे पहिलीसे दूसरी और तीसरी को गुण देनेसे दो खण्ड और दूसरी से तीसरीको गुणने से एक खण्ड, इस प्रकार तीनखण्ड होंगे और करणियोंका योग रूप होगा। इस भांति एकोन पद- संकलित के समान करणीखण्ड होते हैं। जैसा — दो करणीखण्ड के वर्ग में एक करखण्ड होता है, और तीन करणीखण्ड के वर्ग में तीन करणीखण्ड होते हैं, चार करणीखण्डके वर्ग में छु करणीखण्ड होते हैं, इसी भांति आगे भी जानो । इस्से स्पष्ट ज्ञात होता है कि जो वर्गस्थान में तीन करणीखण्ड और रूपहों तो तीन मूञ्जकरणीखण्ड होंगे। यहां रूप- वर्ग करणियों के योगका वर्ग है पहिली करणी पहिला खण्ड और दू- सरी तीसरी करणी का योग दूसरा खण्ड है, इन खण्डों के योग का वर्ग रूपवर्ग के समान है इसलिये दोनों करणियोंके योग के तुल्य रूप ध टाने से अन्तरवर्ग अवशिष्ट रहता है इसका कारण कहचुके हैं। जैसा---