पृष्ठम्:बीजगणितम्.pdf/१००

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A करणीषड्डिधम् । ६३ , क २ क ३ क पूं. ये मूलकरणी हैं इनका वर्ग रु १० क २४ क ४० कं ६० हुआ । यहां पहिला खण्ड २ और शेष मूलकरणी के योग के समान दूसरा खण्ड ८ कल्पना करने से इन दोनों खण्ड का चौगुना घात ६४ हुआ यह वर्गस्थानीय क २४ और क ४० का योग है क्योंकि वर्ग करने में पहिली करणी से दूसरी और तीसरी करणी को गुण दो, बाद उसको चौगुनी करके योग करो, अथवा दूसरी और तीसरी करणी के योग को पहिली से गुण दो और उसे चौगुनी करो, फल समान ही होगा | अब २ १८ करणीखण्डों का योग रूप १० होता है, इसका वर्ग १०० हुआ, इस में चतुर्गुण खण्डोंका घात ६४ घटानेसे शेष ३६ रहा, इसका मूल ६ हुआ, यह उन खण्डों का अन्तर है इसलिये 'यो- गोऽन्तरेणोनयुतोऽर्धेितस्तौ राशी- इस संक्रमण विधि से ८ और २ खण्ड हुए यहां छोटा खण्ड २ पहिली करणी है और बड़ा खण्ड ८ शेष करणी का योग है इस्से फिर क्रिया की है इसलिये ' वर्गे करणीत्रितये करणीतियस्य तुल्यरूपाणि -' यह विधि उपपन्न हुआ। ऐसाही आगे भी जानो । यहां चतुर्गुण प्रथमकरणी और शेषकरणी का घात घटाते हैं इस लिये शोधत अर्थात् घटाये हुए करणीखण्डों में चतुर्गुण प्रथम करणी का अपवर्तन अवश्य लगेगा, यदि अपवर्तन न लगे तो उदाहरण अशुद्ध होगा । जैसा प्रकृत में छोटी करणी २ है चतुर्गुण हुई, इस का वर्गस्थानीय ‘क २४ क ४० इन करणियों में अपवर्तन देने से ३ । ५ ये खण्ड मिले । और यही खण्ड शेषविधि से भी आते हैं, जैसा - e और २ ये प्रथम के सिद्ध किये हुए करणीखण्ड हैं इनमें बृहत्खण्ड ८ को रूप मानकर वर्ग ६४ हुआ, इसमें शेषकरणी ६० घटाने से ४ अवशिष्ट रहा, इस का मूल २ हुआ, इसको रूप में जोड़ने घटाने से १० । ६ ये दो खण्ड सिद्ध हुए, इनका आधा ५ और ३ ये मूल- करणी के खण्ड सिद्ध हुए । इस प्रकार के २ क ३ क ५ ये मूलकरणी 7