पृष्ठम्:बीजगणितम्.pdf/९८

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करणीमडिधम् । ६१ अथवा योगज करणी को अलगाकर संकलितमित करणीखण्ड करलो, बाद मूल लो। परंतु यह करना अत्यन्त दुःसाध्य है क्योंकि जिस वर्ग में धनसाम्य से कुछ करणी उड़ जाती है वहां उन्हें संकलितमित करना बहुत कठिन है । उदाहरण - (२) क १० क ६ क ५ कई क १० क ६ क ५ कई क १०० क २४०६.२०० क १२०. क ३६ के १२० क ७२ क. २५ रु ६० वर्ग २४ २४० २००१२० क १२० क क ६० अब यथासंभव करणियों का योग करने से रूं २४क ६० के ३२ यह वर्ग हुआ | यहां संकलितमित करणीखण्ड करना अशक्य है । एक स्थल में वर्ग में संकलितमित करणीखण्ड रहते हैं परंतु उक्लनियम के अनु- सार वर्गमूल नहीं मिलता। जैसा- J क ३ क ५ क ६ क ९.० क ३ क ५ क ६ क १० क ६ क ६० क ७२ क १२० क २५ क १२० के २०० क ३६ क २४० क १०० वर्ग=रू २४क ६० क ७२ के १२० के १२० के २०० २४० , यथासंभव करणियों का योग करने से ' रू २४ ४५० क ५१२ क ५४० ' यह उद्दिष्टराशि का वर्ग हुआ। यहांपर संकलितमित करणीखण्ड तो हैं परन्तु उक्तनियमा- 'नुसार मूल नहीं मिलता। अव यह न कहना चाहिये कि जिस सरूपसंयुक्त करणी का • वर्गमूल न मिले वह वर्गही नहीं है इत्यादि । उद्दिष्टवर्ग में जो तीन करणीखण्ड हों तो रूपके वर्ग में दो करणीखण्ड घटाकर मूल लो, जो छ करणीखण्ड हों तो तीन करणीखण्ड घटा- कर मूल लो, जो दस करणीखण्ड हो तो चार करणीखण्ड घटाकर मूल लो, जो पंद्रह करणीखण्ड हों तो पांच करणीखण्ड घटाकर मूल लो ।