पृष्ठम्:बीजगणितम्.pdf/९७

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बीजगणिते - 6 कचिन्महत्या वा चतुर्गुणाकृते याः करण्यो लब्धास्ता एवं मूलकरण्यो भवन्तीति वस्तुस्थितिः । अथ यदि शेषविधिना मूलेऽय नही करणी तयोर्या-' इत्यादिना ता न भवन्ति तदा तन्मूलमसदिति । अत्र 'अल्पया' इत्युपलक्षणमिति यदुव्या- ख्यातं तद्बृहत्खण्डशोधनपूर्वकं मूलग्रहणे, लघुखण्डशोधनपूर्व मूलग्रहणे त्वल्पयेत्येव || २२ | २३ | २४ । २५ ।। करणीवर्ग में नियमित करणीखण्ड के शोधन का प्रकार- एकसे लेकर १, ६, १०, १५, २१, २८, ३६, ४५ इत्यादि जितने संकलित हैं उतने ही उद्दिष्ट वर्ग में करणीखण्ड होते हैं । ( १ ) यह नियम प्रायिकहै अर्थात् सर्वत्र नहीं मिलेगा, जैसा- 'स्थाप्योऽन्त्यवर्गश्च.. तुर्भुणान्त्यनिघ्नाः--' इस रीति से जो वर्ग किया जाता है उस में संकलितमितही करणी- खण्ड होंगे। परंतु कहीं यथासंभव करणियों का योग करने से संकलितमित करणीखण्ड न रहेंगे। उदाहरण--- (१) क २ क ३ क ५ क ६ क १० क २ क ३ क ५ क ६ क १० कृ ४ क २४ क ४० के ४८ क ८० क ६ क ६० क ७२ क १२० क २५ क १२० क २०० क ३६ के १४० क १०० वर्ग= २६ क २४ के ४० के ४८ क ८० के ६० क ७२ क १२० के १२० के २०० के २४० । यहां पर संकलितमित करण्यीखण्ड हैं । उक्तवर्ग में क १२० के १२० के ६० के २४०, और क ७२ क २०० इनका योग करने से रू २६ क २४ क ४० के ४८५० ४८० के ५४० क ५१२ यह हुआ । अब यहां संकलितमित करणीखण्ड नहीं हैं इसलिये आचार्य ने कहा है कि (अथ यदाहरणे ताबन्ति न भवन्ति तदा संयोज्य योगकरणी विश्लिष्य या तावन्ति कृत्वा मूल प्रात्यमित्यर्थः) यहि उदाहरण में संकलितमित करणीखण्ड न हों तो योग करके