पृष्ठम्:बीजगणितम्.pdf/९४

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• करणीम् । ८७ 3 घटाने से १० । १० हुए, इनको आधा ५५ हुआ इन में से एक को अवश्य ऋण मानना चाहिये नहीं तो उद्दिष्टवर्ग में ऋणकरणी न होगी, अबमूलकरणीको ऋण और दूसरी को धन मानकर किया करते हैं- कर्पू यह मूलकरणी है शेष क ५ को रूप कल्पना करने से, उसका वर्ग २५ हुआ, इसमें क २४ के तुल्य रूप घटाने से शेष १ रहा, इस का मूल १ मिला, इसको रूप में जोड़ने घटाने से ६ । ४ हुए, इन का आधा ३ और २ हुआ, इसप्रकार ' क ३ क २१ ये करणी सिद्ध हुई । यहां दोनों करणी घन होनी चाहिये क्योंकि यदि एक करणी ऋण मानीजाय तो वर्ग में क २४ घन न होगी, यदि दोनों करणियों को ऋण मानलो तो शेष क २४ ऋण न होगी, पर जब वर्गकरने में चतुर्गुण मूसकरणी ३० से 'कई क २ ' इन मूलकरणियों को गुण देने में इनका ऋणत्व नष्ट होजायगा इसकारण उन दोनों करणियों को घन मान लेना योग्य है, इस रीति से ‘क पूं क ३ क २' यह मूल सिद्ध हुआ | अब मूलकरणी को धन मानकर गणित दिखलाते हैं - यहां मूलकरणी कं५ है और दूसरी करणी पूं को रूप मानकर वर्ग २५ हुआ, इस में शेष करणी २.४ के तुल्य रूप घटा देने से पूर्वप्रकार के अनुसार क ३ क २ सिद्ध हुई, यहां दोनों करणी ऋण होनी चाहिये क्योंकि एक को ऋण मानने से उक्त रीति के अनुसार क २४ धन न होगी, यदि दोनों करणियों को धन मान लो तो उक्त युलि से क ४० औरक ६० ये ऋण न होंगी, इसप्रकार क ५ कई कई यह मूल हुआ। अथवा रूपवर्ग में क २४ क ६० के तुल्य रूप घटाने से शेष १६ रहा, इसका मूल ४ हुआ, इसको रूप १० में जोड़ने घटाने से १४ । ६ हुए, इनका आधा ७ । ३ हुआ, इनमें से क ७ को रूप कल्पना करने से वर्ग ४९ हुआ, इसमें वन क ४० के तुल्य रूप वटाने से शेष का ३ मूल मिला, इसको रूप ७ में जोड़ने घटाने से १० और ४ हुए, इनका आधा ५ / २