पृष्ठम्:बीजगणितम्.pdf/९३

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• बीजगणिते - अद्वितीयोदाहरणे प्राग्वत्प्रथमपक्षे मूल करण्यौ क५५ । अनयोरेका ऋण ५ | तान्येव रू- पाणीति ऋणोत्पन्ने करणीखण्डे ऋण एवेति यथा- क्रमं न्यासः ककक ५ । द्वितीयपक्षेणापि य थोक्का एव मूलकरण्यः क क क ५ एवं बुद्धिमता नुक्कमपि ज्ञायत इति || उदाहरण- करणी तीन, करणी सात इनके अन्तर का वर्ग और उस वर्ग का मूल कहो । करणी दो, करणी तीन, करणी पांच ॠऋण अथवा करणी दो ऋण, करणी तीन ऋण, करणी पाँच धन इनका वर्ग और उस वर्ग का मूल बतलाओ || ( १ ) क ई क ७ । अथवा क ३ क ७ इनका वर्ग तुल्यही हुआ रू १० क८४ | अब इस वर्ग पर से मूल साधन करते हैं - रूप १० के वर्ग १०० में क ८४ के तुल्यं रूप घटाने से १८४ शेष बचा, इसका मूल नहीं मिलता इसकारण क ८४ को धन मानकर रूप वर्ग में घटाने से १६ शेष बचा, इसका मूल ४ हुआ, इसको रूप में जोड़ने घटाने से १४ और ६ हुए, इन का आधा ७ और ३ हुआ, इसप्रकार ' क ७ क ३ ' ये मूलकरणी सिद्ध हुई, इनमें से मनमानी एक करणीको ऋण कल्पना करने से क ई क ७ १ या क ३ क ७ ये पूर्वोक्त मूलकरणी हुई । , ( २ ) कं २ क ३ कर्पू, याक ३ क ३ क इनका वर्ग रू १० क २४ क ४० के ६० यह समानही हुआ। अब इसका वर्गमूल घते हैं - रूप १० का वर्ग १०० में धन क ४०, क ६० के समान रूप घटाने से शेष रहा, इसका मूल हुआ, इसको रूप में जोड़ने और