पृष्ठम्:बीजगणितम्.pdf/८५

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७८८ बीजगणिते- सन्ति तर्हि तयोर्मूल करण्योर्मध्ये अल्पमूलकरणी, या महती तानि रूपाणि प्रकल्प तरूपेभ्यो भूयोऽप्येवम् | करणीतुल्यानि रू- पाणि रूपकृते विंशोधयेदित्यादिना पुनरपि मूलकरणीद्वयं स्यात् । पुनरपि यदि शेषाः करण्यो भवेयुस्तदैवमेव पुनः कुर्यात् । अ महती रूपाणीत्युपलक्षणम्, कचिन्महती मूलकरणी अल्पा तु रूपाणीति द्रष्टव्यम् । वक्ष्यति चाचार्यः । 'चत्वारिंशदशीतिः-' इत्युदाहरणावसरे ।। १६ । २० ॥ करणी के मूल लाने का प्रकार --- रूपवर्ग में उद्दिष्टवर्ग के एक वा दो वा अनेक करणीखण्डों को घटा दो और शेष का वर्गमूल लो बाद उसे रूप में जोड़ और घटा दो फिर उनका आधा करो वे मूल में दो करणी होंगी। जो उद्दिष्ट वर्ग में करणी अवशिष्ट रहैं तो उन दो करणियों में से जो बड़ी करणी हो उसको रूप मानकर पहिले के तुल्य क्रिया करो। यहां जो रूपवर्ग में करणीखण्डों को घटाना कहा है सो छोटे करणीखण्डों से घटाना आरम्भ करना चाहिये क्योंकि यदि ऐसा न किया जायगा तो बड़ी रूप और छोटी मूलकरणी यह नियम न रहैगा । कहीं छोटी करणी रूप और बड़ी मूल- करणी होती है | उपपत्ति --- यहां करणीवर्ग ‘स्थाप्योऽन्त्यत्रर्गश्चतुर्गुणान्त्यनिघ्नाः-' इसप्रकार से करते से हैं । इसमें प्रथम स्थान में प्रथमकरणीवर्ग और प्रथम द्वितीय आदि कर- शियों का चतुर्गुण घात होता है फिर द्वितीय करणीवर्ग और द्वितीय तृतीय आदि करणियों का चतुर्गुण घात होता है। यही आगे भी जानो । यहां जितने करणीखण्ड होते हैं उनके अवश्य वर्ग होते हैं, वर्गत्व होने से उनके मूल मिलते हैं और वे मूलकरणी के समान होते हैं, वर्गराशि में जो रूपोंका समूह होता है वह मूलकरणियों का योग है, परंतु वह योग