पृष्ठम्:बीजगणितम्.pdf/६०

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अनेकवर्णपडघम् । 6 , या ६ १ हुआ, इसको वर्ग शेषमें घटाना है तो ' संशोध्यमानं स्वमृणत्व- इस रीति के अनुसार यद्यपि यावत्तावत्कालकभावित के ऋण होने के कारण ' धनर्णयोरन्तरमेव योगः ' इससे शुद्धि होगी तोभी याव- तावनीलकभावित और यावत्तावद् वर्ष साजात्य के कारण दूने हो जायेंगे तो शुद्धि न होगी इसलिये ऋण यावत्तावत् तीन मूल कल्पना करो क्योंकि स्त्रमूले धन ' ऐसा कहा है तो दो दो राशि के दूना घात करने से या. का १३ या. नी ६ या ६ हुआ, यहांपर यद्यपि ' संशोध्यमानं स्वमृणत्वमेति - ' इस के अनुसार यावत्तावनीलकभावित और यावत्तावत् की शुद्धि होगी तो भी यावत्तावत्कालकभावित के दूना होजाने से शुद्धि न होगी, इसलिये यावत्तावन्नीलकभावित और यावत्तावत् के व्यत्यास के लिये नीलक और रूपको ऋण कल्पना करना चाहिये, अथवा यावत्तावत्- कालकभावित के लिये कालक को ऋण मानना चाहिये इस प्रकार दो गति हैं तो मू ‘या ३ का २ नी १ रू १' यह अथवा ' या ३ का २. नी. १ रू १' यह हुआ । इन दोनों मूलों का आपस में दो दो का दूना बात तुल्यही होता है 'या. का १२ या. नी ६ या ६ का. नी. का ४ नी २, इसके घटाने से सर्वशुद्धि होती है इस कारण उन दोनों का मूलत्व सिद्ध हुआ || इति द्विवेदोपाख्याचार्य श्रीसरयूप्रसादसुत-दुर्गाप्रसादाचीते लीलावतीहृदयग्राहिणि बीजविलासिन्यनेकवर्षपद्विधं समासम् ॥ अनेक वर्ग और वर्गमूल समाप्त हुआ । सोपपत्तिक अनेकवर्णषधि समाप्त हुआ || दुर्गाप्रसादरचिते भाषाभाष्ये मिताक्षरे । चासनाभङ्गिसुभगं संपूर्ण वर्णषविधम् ॥