पृष्ठम्:बीजगणितम्.pdf/५६२

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14 भावितम् । वर्णयोर्माने विपर्ययेण ज्ञातव्ये, यंत्र कालकाङ्को योजितस्तद्यावत्तावन्मानम्, यत्र यावत्तावदङ्कस्तत्का लकमानमित्यर्थः । यत्र तु इयत्तावशादेवं कृते सत्या- लापो न घटते तत्रेष्टफलाभ्यां वर्षाकावनित व्यत्य यान्माने भवतः || थापायासेनैव राशिमानमभिन्नं 'सिध्यति तथा सार्धानुष्टुब् द्वयेनाह -भावितमिति ।। अर्थ आचार्येरेव व्याख्यातः ॥ अब जिसभांति अल्पप्रयास से राशि अभिन्न जानेजावें सो कहत हैं- तुल्य दो पक्षों में से अभीष्ट एक पक्ष में भावित को घटाकर दूसरे ॐ पक्ष में सरूप वर्ण को घटा दो और पक्षों में भाविताक का भाग देकर वर्णाङ्कघात और रूप इनके योग में इष्टांक का भाग दो और इष्टाङ्क तथा इष्टभक्तफलको दो स्थान में रक्खो और उन (इष्ट-फल ) को वर्णाक में अपनी इच्छा से जोड़ वा घटा दो वे व्यत्यय से वर्णों के मान होंगे । अर्थात् जहां कालक वर्णाङ्क जोड़ा गया है वहां पर यावत्तावत् का मान होगा और जहां यावत्तावद्वर्णाङ्क जोड़ा गया है वहां कालक का मान होगा ||

अथ प्रथमोदाहरणम् -' चतुत्रिगुणयो राश्योः संयुतिर्द्वियुता तयोः | राशिघातेन तुल्या-' इति । तंत्रयथोक्के कृते पक्षौ या ४ का ३ रु २ या का भा १. वर्णाङ्काहतिरूपैक्यम् १४ एतदेकेनेष्टेन हृतं जाते