पृष्ठम्:बीजगणितम्.pdf/५२८

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अनेकवर्णमध्यमाहरणम् । राशि ४५ मिला, इसभांति पहिला राशि ६ और दूसरा ४५ आया | वा राशि वर्ग ३६ दूना करनेसे ७२ हुआ यह वर्गान्तर है इसमें कल्पित गश्यन्तर ४ का भाग देनेसे योग १८ आया इनसे संक्रमण के द्वार राशि ७ । ११ आये । इनमें पहिले राशि ७ के वर्ग ४६ में कल्पित राशि ६ वर्ग ३६ जोड़देने से दूसरा राशि ८५ हुआ, वा २ अन्तर मानने से दूसरा राशि ३२५ हुआ | अथवा राशि कल्पनमें दूसरी युक्ति --- वर्गयोग दूने राशिघातसे युत वा ऊन अवश्य मूलप्रद होता है । राशियों का घात दूना वर्गहो ऐसा एकवर्ग कल्पना किया और दूसरा वर्गा क्योंकि वर्गीका घात वर्ग होता है, तो १ | २ राशिहैं इनका घात २ दूना हुआ ४ यह लघुराशि वर्ग ४ है | और १ | २. इनका वर्ग १ | ४ योग ५ दूसरा राशि हुआ | एकवर्ग और दूसरा वर्गार्ध २ है इनका दूना घात ३६ हुआ यह लघुराशि वर्ग है, इसका मूल ६ पहिला राशि है | और ६ | २ इनका वर्ग ८१ | ४ योग ८५ दूसरा राशि हुआ । ये दोनों व्यक्तराशि यावत्तावद्वर्ग गुणित कल्पना किये गये हैं वहां पहिले उदाहरण में दूसरा राशि रूपोन और दूसरे उदाहरण में दूसरा राशि रूपयुक्त माना गया है जैसा - याव ४ | याव ५ रू १ | याव ४ | यात्र ५ रू १ इसीप्रकार ऐसे राशि- वर्ग कल्पना करने चाहिये जिसमें दो आलाप स्वतः घटितहों उनमें से पहिले राशिका मूल स्वतः मिलेंगा दूसरे का वर्गप्रकृति आगा || सूत्रम्- यत्राव्यकं सरूपं हि तत्र तन्मानमानयेत् । सरूपस्यान्यवर्णस्य कृत्वा कृत्यादिना समम् ॥ ८२ || राशिं तेन समुत्थाप्य कुर्याद् भूयोऽपरां क्रियाम् । सरूपेणान्यवर्णेन कृत्वा पूर्वपदं समम् ॥ ८३ ॥