पृष्ठम्:बीजगणितम्.pdf/५२६

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& अनेकवर्णमध्यमाहरणम् । रेव वर्गयोगः ८५ अयं द्वितीयो राशिः, एतौ व्यक्तो यावत्तावर्गगुणित कल्पितौ, प्रथमोदाहरणे द्वितीयो राशी रूपेणोनो द्वितीयोदाहरणे रूपयुतः कार्य, एवं कृत्वा तथा तौ राशिवर्गों कल्प्यो यथालापद्वयमपि घटते किंतु प्रथमस्य मूलं गृहीत्वा द्वितीयस्य वर्ग- प्रकृत्या मूलमित्यादि पूर्वोक्कमेव | एवमनेकधा || निबद्धमाघोदाहरणं शिष्यबुद्धिप्रसारार्थ प्रदर्शयति राश्योरिति । हे गणक, तौ राशी यदि वेत्सि तदा गणयित्वा कथय । ययोः कृत्योर्युतिवियुती वर्गयोयोगान्तरे एकेन वा रहते वर्गों भवेताम् || उदाहरण वे दो कौन राशि हैं जिनका वर्गयोग और वर्गान्तर एक से युक्त अथवा ऊन वर्ग होते हैं । यहांपर याव ४ । याव ५ रुप इं ये राशि कल्पना किये हैं इनका रूप से जुड़ा हुआ योग याव ह और अन्तर याव १ मूलप्रद होता है और कल्पित पहिले राशि यात्र ४ का मूल या २ है दूसरे राशि यात्र ५८१ का मूल वर्गप्रकृति से, वहां इष्ट १ कनिष्ठ है उसके वर्ग १ प्रकृति ५ गुणित ५ क्षेप १ से ऊन ४ का मूल २ ज्येष्ठ हुआ । वा कनिष्ठ १७ है उससे ज्येष्ठ ३८ हुआ, कनिष्ठ १ | १७ यावत्तावन्मान हैं दूना करनेसे पहिले राशि २ । ३४ हुए और ज्येष्ठ २।३८ दूसरे राशि हैं इनका क्रम से न्यास | २ २ वा ३४३८ दूसरे उदाहरण में भी पहिले के राशि हैं उनमें से पहिले का मूल या २ हुआ दूसरे का वर्गप्रकृतिसे, वहां इष्ट ४ कनिष्ठ है इसके वर्ग १६ प्रकृति ५ गुणित ८० क्षेप १ युत ८१ का मूल ६ ज्येष्ठ हुआ, वा.