पृष्ठम्:बीजगणितम्.pdf/५१

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४४ बीजगणिते- ३ रु ३१ हुआ उसको ' या ३ रु २' इस भाज्य शेष में घटाने से ऋणरूप १ लब्धि मिली, इस प्रकार या ५० रू १' यह संपूर्ण लब्धि हुई यही पहिला गुण्य था ॥

( २ ) भाग्य = याव १५ या ७ रू २ | भाजक या ३ रू २ । यहां

पर भी उक्तरीति के अनुसार 'या ५ रु १' यह लब्धि मिली || ( ३ ) भाज्य = याव १५ या ७ रु २ | भाजक = या ३ रू २ । यहाँ पर भी उक्त प्रकार के अनुसार लब्धि ' या ५ रू १' आई ॥ ( ४ ) भाज्य = याव १५ या ७ रू २ भाजक = या. ३. रू ३ । उक्त प्रकार से लब्धि मिली या पूं. रू. १ ॥ ✓ अव्यक्त राशि के गुणन और भागहार का प्रकार समाप्त हुआ || वर्गोदाहरणम् - रूपैः षड्भिर्वर्जितानां चतुर्णा- मव्यक्तानां ब्रूहि वर्ग सखे मे ॥ ६ ॥ न्यासः या ४ रू ६ । जातो वर्गः याव १६ या ४८ रू ३६ अथ यद्यपि वर्गसूत्रमन्तरा तदुदाहरणं वक्नुमनुचितं तथापि वर्गस्य समद्विघातरूपत्वाद् गुणनसूत्रेणैव तत्सिद्धेः 'अव्यक्तवर्ग- करणीगुणनासु चिन्त्यः' इति विशेषोक्तेश्च तदुचितमेवेति शालि- न्युत्तरार्धेन तदाह - रूपैरिति । स्पष्टोऽर्थः । अब यहांपर यद्यपि वर्गसूत्र के कहने के बिना उसके ( वर्ग के ) उदा- हरण का कथन अनुचित प्रतीत होता है तो भी वर्ग के समद्विघातरूप होने से गुणसूत्र ही से उसका ( वर्ग का ) साधन होता है इस कारण वर्ग का उदाहरण कहते हैं-- ऋणरूप छ से रहित यांवत्तावत् चार का वर्ग कहो ॥ न्यास । या ४ रू इनका वर्ग करने के लिये स्थान गुणन की रीति न्यास । >