पृष्ठम्:बीजगणितम्.pdf/५०

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A d वर्णपड्डियम् । अव्यक्त राशि के भागहार का प्रकार - 4 अब भाज्याद्धरः शुध्यति —' इस सूत्र के अनुसार भजमफल के सिद्ध होने पर भी वर्णसंज्ञा का परिचय और मन्दजनों के बोध के लिये फिर भी उसे स्पष्ट करते हैं -- जिन जिन वर्ग और रूप से गुणा हुआ भाजक भाज्य से अपने अपने स्थानों में घटाया हुआ शुद्ध हो अर्थात् अवशिष्ट न रहै वे वर्ण और रूप यहां लब्धि होते हैं | उपपत्ति- इस प्रकार की उपपत्ति मेरी बनाई हुई लीलावती की टीका में स्पष्ट है | F ( १ ) भाज्य = याव १५ या ७ रू २ । भाजक = या ३. रू २ यहां भाज्य में पहिले यावत्तावत् वर्ग १५ हैं इस कारण उनमें यावत्तावत् वर्ग ही को घटाना युक्त है भाजक में पहिले यावत्तावत् ३ हैं उनको रूप से गु- णने से ‘ स्याद्रूपवर्णाभिहतौ तु वर्ण: ' इस सूत्र के अनुसार वर्ष ही होता है किंतु उनका वर्ग नहीं होता, यावत्तावत् से गुण देने में समान जा- तियों के घात होने से यद्यपि यावत्तावत्वर्ग होगा तो भी में तीन होंगे इसलिये शोधन करने पर भी भाज्य में यावत्तावत्वर्ग न घटसकेंगे इस कारण यावत्तावत् पांच से भाजक को गुणने से यावत्तावत्वर्ग पंद्रह होंगे तो घटजायेंगे, अब या ५ से भाजंक ' या ३ रू. २' को गुणने से हुआ ' याव १५ या १० ' इसको भाज्य' याव १५ या ७ रू ३' में यथा- स्थान घटाने से शेष ' या ३ रू ३' बचा यावत्तावत् पांच से गुणा हुआ भाजक शुद्ध हुआ है इसलिये यावत्तावत् ५ लब्धि आई। अब भाज्य रोष में यावत्तावत् तीन हैं इस कारण भाजक को रूप से गुण देने से जो गुणनफल होगा वह भाज्यशेष में घट सकैगा परंतु घन रूप से गुणन करने में ‘ संशोध्यमानं स्वमृत्वमेति ' इस सूत्र के अनुसार दोनों के ऋण होने से योग होगा तो शुद्धि न होगी इस कारण ऋणरूप से गुणने से शुद्धि होगी, अब ' रू १ ' से भाजक 'या ३ रू २' को गुणने से ' या