पृष्ठम्:बीजगणितम्.pdf/५००

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अनेकवर्णमध्यमाहरणम् | ४६५ स्वत: वर्ग है इसलिये उनके घन याबघ ८ और वर्ग यावव ४६ का योग यावघ ८ यावत्र ४६ हुआ यह वर्ग है इसकारण कालकवर्ग के साथ समीकरण के लिये न्यास । यावत्र ८ यावव ४६ काव १ - यहां दूसरे पक्ष का मूल का १ आया और पहिले पक्ष में यावत्तावद्वर्ग का अपवर्तन देने से याच ८ रु ४६ प्रकृति याव ८ और क्षेप रु ४६ हुआ बाद इट २ कनिष्ठ कल्पना किया उसका वर्ग ४ प्रकृति ८ गुणित ३२ क्षेप ४६ युत ८१ हुआ इसका मूल ६ ज्येष्ठ हुआ, कनिष्ठ २ प्रकृतिवर्ण यावत्तावत् का मान है उसके वर्ग ४ से गुणा ज्येष्ठ ४९६ = ३६ परपक्ष का मूल हुआ इसका पूर्वमूल का १ के साथ समीकरण करने से कालक का मान ३६ मिला | पूर्वकल्पित राशि याव २ | या ७ हैं इनमें यावत्तावत् मान २ से ( अर्थात् उत्थाप्य राशि के वर्गगत होने से मान २ वर्ग ४ से ) उत्थापन देने से राशि आये ८ | २८ L अथवा कनिष्ट ७ है इसके वर्ग ४६ प्रकृति ८ गुणित ३६२ क्षेप ४६ युत ४४१ का मूल २१ ज्येष्ठ हुआ यहां भी परपक्ष में वर्गवर्ग का अपवर्तन देने से ज्येष्ठ, कनिष्ठ ७ के वर्ग ४६ से गुण देने से परपक्ष का मूल १०२६ हुआ यह कालक का मान और कनिष्ठमित यावत्ताव- न्मान ७ अर्थात् ४६ से पूर्व राशि में उत्थापन देने से राशि आये ६८ | ३४३ ॥ 6 सभाविते वर्णकृती तु यत्र- ' एतद्विषयीभूतमु दाहरणम्- ययोर्वर्ग युतिर्घातयुत्ता मूलप्रदा भवेत् । तन्मूलगुणितो योगः सरूपश्चाशु तौ वद ॥ ३१ ॥ -