पृष्ठम्:बीजगणितम्.pdf/४९३

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बीजगरियते-- बर्गरूप पक्षखण्ड को घटादेने से जो शेष रहता है वह लघु और बृहत् राशि का वर्गान्तर है इसलिये इष्ट अन्तर कल्पना करके ' वर्गान्तर राशिवियोगभक्तं-' इस सूत्रके अनुसार योग होता है ( अर्थात् वर्गान्तररूप शेष में गश्यन्तररूप इष्टका भाग देनेसे योग मिलता है) फिर योग और इस संक्रमण विधि अन्तरं जानकर ‘योगोऽन्तरेखोनयुतोऽर्धितस्तौ राशी- से राशि ज्ञात होते हैं, यहां योग में अन्तर जोड़कर आधा करनेसे बड़ा राशि होता है उसकी आवश्यकता नहीं है इसलिये नहीं कहा, इसीभांति योग में अन्तर घटाकर आधा करने से छोटारांशि होता है वहां इष्टसे भागा हुआ शेष योग है इसलिये इष्ट कल्पित अन्तर से ऊन योग का आधा लघुराशि है अब पहिले अलग किया हुआ पक्षखण्ड वर्गात्मक लघु राशि है इसलिये उसका मूल लघुराशि सिद्ध हुआ इसीलिये उनका समी- करण करना युक्त है इससे शेषकस्य, इष्टोद्धतस्येष्ठविवर्जितस्य दलेन तुल्यं हि तदेव कार्यम् ? यह उपपन्न हुआ || उदाहरणम् - तौ राशी वद यत्कृत्योः सप्ताष्टगुणयोर्युतिः । मूलदा स्यादियोगस्तु मूलदो रूपसंयुतः ॥ १२ ॥ अत्र राशी या । काययोः साष्टगुणयो- श्रुतिः याव ७ काव = अयं वर्ग इति नीलकवर्गेण समीकरणार्थं न्यासः | याव ७ काव ८ नीक याव • काव • नीव १ समशोधने कृते कालकवर्गाष्टकं प्रक्षिप्य गृहीतं नीलकपक्षस्य मूलम् नी ? परपक्षस्यास्य याव ७ काव Jaho