पृष्ठम्:बीजगणितम्.pdf/४९४

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अनेकवर्णमध्यमाहरणम् | वर्गमकृत्या मूले तत्र यावत्तावद्वर्गे योऽङ्कःसा प्रकृतिः ७ शेषं क्षेपः काय = 'इष्टं इस्वं-' इत्यादिना कालक- द्वयमिष्टं प्रकल्प्य जाते मूले क का । ज्ये का ६ ज्येष्ठं नीलकमानं कनिष्ठं यावत्तावन्मानं तेन यावत्तावदु- त्थाप्य जातौ राशी का २ का १ पुनरेतयोर्वर्गयोः सप्ताष्टगुणयोरन्तरं सैकं जातं काव २० रू १ एतदर्ग इति प्राग्वलव्धं कनिष्ठमूलम् २ | वा । ३६ एतत्कालक- मानेनोत्थापितौ जातौ राशी ४१२ | वा | ७२ | ३६ | उदाहरण----- वे दो कौन राशि हैं जिनके वर्गों को क्रमसे सात आठ से गुणकर जोड़ लेते हैं तो वह योग मूलप्रद होता है और अन्तररूप मूलप्रद होता है । कल्पना किया कि राशि हैं या १ / का १ इनके वर्ग हुए याव १ | काव १ | सात और आठ से गुण देने से हुए याव ७ । काव ८ इनके योग का नीलकवर्ग के साथ सभीकरण के लिये न्यास | याव ७ काव ८ नीव० याव० काव० नीव १ समशोधन करने से पक्ष यथा स्थितरहे अनन्तर दूसरे पक्षका मूल नी १ आया और पहिले पक्ष याव ७ का ८ का मूल वर्गप्रकृति से लेना चाहिये तो यावत्तावत् के वर्गाङ्क ७ को प्रकृति और शेष कालक वर्गक ८ को क्षेप कल्पना किया बाद क्षेत्र के वर्णात्मक होने से कलिष्ठ का २ कल्पना किया उसका वर्ग काव ४ हुआ प्रकृति ७ से गुण देने से काव २८ हुआ इसमें क्षेप काय ८ जोड़ देने से काय ३६ हुआ इसका मूल का