पृष्ठम्:बीजगणितम्.pdf/४९२

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अनेकवर्णमध्यमाहरणम् । ० द्वितीय पक्षली १ प्रथमपक्षस्य वर्गप्रकृत्या मूलं तत्र प्रथमवर्णाङ्क: २० प्रकृतिः शेष क्षेपः काव १२ नीव ५ रू ३२ अत्र कालकनीलकयोर्व्यक्ते माने कल्पिते २ । ३ एतयोग४ आभ्यमुक्तवर्णावत्थाप्य रूपेषु ३२ प्रक्षिप्य जातः क्षेषः १२५ अथ रूप- पञ्चकं कनिष्ठं कल्पितं ५ तस्य वर्ग: २५ प्रकृति २० क्षुण्ण: ५०० क्षेप १२५ युतः ३२४ अस्य मूलं ज्येष्ठम् २५ कनिष्ठं प्रकृतिवर्णस्य यावत्तावतो मानम् ५ कालकनी लकमाने पूर्वमेव कल्पिते २ १ ३ एवं जाता राशयः ५१२ । ३ श्येष्ठं पीतकमानम् २५ लाप:- राशयः ५। २ । ३ एतेषां वर्गाः २५ | ४ | १ क्रमेण विंशत्या द्वादशभिः पञ्चभिश्च गुखिताः ५०० ४८ ४५ एतेषां योगः ५६३ द्वात्रिंशता ३२ मिश्रो जातो वर्ग: ६२५ अस्य मूलं २५ ज्येष्ठमूलसमम् ॥ जहां एक पक्षका मूल ग्रहण करने से दूसरे पक्षमें भावित के सहित वर्णवर्ग हों वहां किस भांति वर्गप्रकृति का विषय होगा सो कहते हैं-- यदि एक पक्षका मूल लेने के बाद दूसरे पक्ष में भावितके सहित वर्ग वर्ण होवें तो वहां तदन्तर्वर्ती जितने मूल मिलें उनको लो और जो शेष बचे उसमें इष्टका भाग दो जो लब्धि आवे उसमें इष्ट घटादो | फिर उसके आधे के साथ पूर्वगृहीत मूलका समीकरण करो ( यहां कितने पक्ष खण्ड का मूल लेना उचित है यह नियम यद्यपि नहीं किया तो भी इसमांति मूल ग्रहण करो कि जिसमें केवल एकवर्णवर्ग का खण्ड अवशिष्टरहे अन्यथा क्रियाका निर्वाह न होगा ) और शेषका सजातीय वर्गात्मक इष्ट कल्पना करो और यहां भी इस पूर्वोक्त नियम के अनुसार राशिमान व्यक्त सिद्ध होता है यदि आलापविधि शिष्ट न हो तो एक

  • राशिको व्यक्तमानकर क्रिया करो ||

उपपत्ति--- एक पक्षका मूल लेने के अनन्तर दूसरे पक्ष में भावित के साथ व वर्ग रहते हैं वे भी वर्गात्मक हैं क्योंकि दोनों पक्ष की समता की गई है और जितने खण्ड का मूल आता है वह खण्ड भी वर्गराशि है अन्यथा क्योंकर उसका मूल मिलेगा, अब बृहदाशिवर्गरूप संपूर्ण पक्ष में लघुराशि