पृष्ठम्:बीजगणितम्.pdf/४८८

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व्यम् | ऽन्वेषामिष्टानि मानानि कृत्वा मूले साध्ये । एवं तदैव यदा इसकृत्समीकरणं यदा तु सकृदेव समीकरणं तदैकं वर्ण मुक्त्वाऽन्येषामिष्टानि मानानिकृत्वा प्राग्वन्मूले || यदि दूसरे पक्ष में दो तीन आादि वर्णवर्ग हों तो किसमांति वर्गप्रकृति की प्रवृत्ति होगी सो कहते हैं- - जहाँ पहिले पक्षका मूल लेने के बाद दूसरे पक्षमें (सरूपके वर्णकृती ) रूपके साथ दो वर्णके वर्ग हों, ( यहां ' सरूपके' यह उक्ति उपलक्ष है इसलिये यदि रूप न होवें या अनेक रूपहों तोभी उनको क्षेप पक्ष में कल्पना करना चाहिये, तथा ' वर्णकृती' इस द्विवचनके उपादान से जहां दो तीन आदि वर्ण वर्ग होवें वहां वर्णोंका इष्ट व्यक्तमान कल्पना करके उन व्यक्तमानोंसे उन चरणों में उत्यापन देना चाहिये और यदि रूप भी होवे तो उन्हें कल्पित व्यक्तमान में जोड़दो यों करनेसे 'सरूपके वर्ण- कृती, रूपाभाव में ‘अरूपके वकृती' वही बात सिद्ध होती है ) वहां स्वेच्छा से एक वर्णक वर्गको प्रकृति कल्पना करके शेष वर्णवर्गको अथवा रूप वर्णवर्ग को क्षेप कल्पना करो बाद उत्तरीति के अनुसार कनिष्ठ ज्येष्ठ सिद्ध करो यदि चर्गात्मक प्रकृति होवे तो ' इष्टभक्को द्विषाक्षेप:--' इस रीति से कनिष्ठ ज्येष्ठसिद्ध करो। इसमांति क्रिया करने से कनिष्ठ ज्येष्ठ

  • व्यक्तरूप आयेंगे तो राशिमान भी अव्यक्तात्मक होगा, तब उक्त क्रिया से

क्या प्रयोजना निकला सो कहते हैं. ( असकृत्समध्ये ) यदि आलाप के अनु- सार फिर समीकरण करना हो तो राशिका अव्यक्तमान युक्तही है जो न करना हो तो दो तीन आदि वर्षों की तरह द्वितीय वर्ष का भी व्यमान कल्पना करो इसभांति सरूप अव्यक्त वर्ग होगा तब उक्त रीति के अनुसार राशिका व्यक्तमान सिद्ध होगा ||