पृष्ठम्:बीजगणितम्.pdf/४८४

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अनेकवर्णमध्यमाहरणम् | कह | ज्ये १५ । वा, क ३३ | ज्ये ५७ । ४७६ कनिष्ठमाद्येनानेन या ३रू ३ समं कृत्वा लब्धेयाव- तावत्कालकमाने २ | ४ | वा १० | १८ | एवं सर्वत्र || . मात्रिकादीति | त्रिकमादिखिकादिः, द्रौ उत्तरो घुत्तरः, त्रिकादिश्च द्व्युत्तरश्च त्रिकादिद्वयुत्तरौ, त्रिकादि- धुत्तरौ यस्यां सा त्रिकादिद्वयुत्तरा, सा चासौ श्रेढी च, तस्यां त्रिकादियुत्तरदयां कापि गच्छे यत्फलं तदेव त्रिगुपं फलमन्य- गच्छे त्रिकादियुत्तर विशिष्टे कस्मिन्निति वद || याव ३ या ६ काव० का० यावया० काव १ का २ उदाहरण--- तीन आदि और दो चय जिस श्रेढी में हैं वहां अनिर्दिष्ट गच्छ में जो त्रिगुण फल होता है सो तीन आदि तथा दो चयवाले किस गच्छ में होगा | यहां यादि ३ चय २ और गच्छ या १ है । तथा यादि ३ चय २ और गच्छ का १ है । 'व्येकपदंघ्नचयो मुख युक्-' इसके अनुसार पहिला गच्छ या ९ व्येक करने से या १ रू १ हुआ, चय २ से गुणा देने से या २ रू २ हुआ इसमें आदि ३ जोड़देने से या २ रू १ अन्त्य घन हुआ इसमें आदि ३ को जोड़कर आधा करने से मध्यधन यां ७. १ रू २ हुआ गच्छ या १ से गुण देने से पहिला फल ( सर्वधन ) याव १ या २ हुआ । इसी प्रकार दूसरा फल ( सर्वधन ) काव १ का २ हुआ यह त्रिगुण पहिले फलके समान है इस कारण समीकरण के लिये न्यास ।