पृष्ठम्:बीजगणितम्.pdf/४८०

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अनेकवर्णमध्यमाहरणम् | आई इससे या १ इस पहिले राशिमें उत्था ४७५ की उन्मिति का १ नीव रं या १ घन देने से का १ नीव १ हुआ और दूसरा राशि को १ ज्यों का त्यों रहा, अब का १ नीव १ | का १ इनका वर्ग काव १ का. नीम इं नीवव १ | काव १ योग का २ का. नीव २ नीवव १ वन है इस कारण नीलकवर्गघनके साथ समीकरण के लिये न्यास | काव २ का. नीव रं नीवव १ नीsro काव ० का. नीव ० नीवव● नीवध १ समशोधन करने से हुए, का २ का. नीव २ नौवन ● afero काव ० का. नीव ० नीवव रं नीव १ दो से गुणकर नीलकवर्गवर्ग जोड़देने से हुए काव ४ का नीव ४ नीवव १ नीवव १ नींवध २ पहिले पक्षका मूल का २ नीव १ आया और दूसरे पक्ष नीवव १ नीवध २ में नीलकवर्गवर्ग का अपवर्तन देने से नीव २ रू १ हुआ अब नीलकबर्गक २ प्रकृति और रूप रंक्षेप मानकर ' इटं हस्वं -' इस सूत्र अनुसार इष्ट ५ कल्पना करनेसे ज्येष्टमूल ७ आया दूसरे पक्ष में वर्ग- वर्ग का अपवर्तन था इस कारण कनिष्टवर्ग २५ से गुण देने से ज्येष्ठमूल दूसरे पक्षका मूल १७५ हुआ, आद्यपक्ष का मूल तो का नीव रं यह है, और कनिष्ठ ५ प्रकृतिवर्ण नीलक का मान है इससे पक्ष के मूलका २ नीच १ के दूसरे खण्ड नीच १ में उत्थापन देना है तो वह वर्गात्मक और ऋण है इसलिये कनिष्ठ ५ का वर्ष ऋॠष २५

हुआ इस भांति आद्य पक्षका मूल क १ रू २५ सिद्ध हुआ इसका दूसरे पक्षके मूलके साथ समीकरण के लिये न्यास | "