पृष्ठम्:बीजगणितम्.pdf/४७६

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अनेकवर्णमध्यमाहरणम् । ४७१ भांति अपवर्तनवश से ज्येष्ट, कनिष्ठ के वर्गवर्ग आदि से गुणा जायगा, शेष क्रिया पूर्व के तुल्य जानो ॥ उपपत्ति---- पहिले पक्षका मूल मिलने से तथा दूसरे पक्षका मूल न मिलने से सिद्ध होता है कि यह पक्षभी वर्गात्मक है अन्यथा उनका क्योंकर साम्य होगा अब उसमें अन्यवर्ग का अपवर्तन देने से भी वर्गत्व नहीं नष्टहोता क्योंकि नियम है वर्ग से वर्ग को गुण देने वा भाग देनेसे उसका वर्गव बना रहता है, यहां अव्यक्तवर्ग का अपवर्तन देने से जो सरूप अव्य- कवर्ग होता है सो भी वर्ग है उसका वर्गप्रकृति के द्वारा जो ज्येष्ठ मूल आवे उसको अव्यक्तवर्ण के मान कनिष्ट से गुण देना चाहिये क्योंकि • ह्रस्वं भवेत्प्रकृतिवर्णमितिः----' इसके अनुसार मूल को मूलही से गुणदेना उचित है, इसभांति दूसरे पक्ष का मूल सिद्ध होता है । इसी युक्ति के अनुसार अव्यक्त वर्गवर्ग का अपवर्तन देने से जो सरूप अव्यक्तवर्ग हो वह भी वर्ग है उसका वर्गप्रकृति से जो मूल आवे वह कनिष्ठवर्ग से गुणा हुआ दूसरे पक्ष का मूल होगा | उदाहरणम्- यस्य वर्गकृतिः पञ्चगुणा वर्गशतोनिता । मूलदा जायते राशिं गणितज्ञवदाशु तम् ॥६॥ राशि: या १ अ वर्गकृतिः पञ्चगुणा वर्ग- शतोना गावव १ याव १०० अयं वर्ग इति कालकव- गैस मं कृत्वा गृहीतं कालकवर्गस्य मूलम् का १ द्विती- यपक्षस्यास्य यावव ५ याव १०० यावत्तावर्गेणापव- ये वर्गमकृत्या मूले